पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३१

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शष्टमुलमुला: है1 १२१ % । ' यह सब जगन् सृष्टि के पूर्व अ सत् के सदृश और जीवात्मा ब्रह्मा और प्रकृति में लन होकर वर्तमान था अभाव न था और जो ( सवे ख8 } यह वचन एस । है जैसा कि ‘कहीं क ईट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुणवा जोड़ा" ऐसी लीला का है क्योकि: सर्व खाल्वि ब्रह्म तलानिति शान्त उपालीत ॥ छान्दो० प्र० ३। खं० १४ । मै० १ ॥ और नद नानाख्त कंचन कठप०अ० २ । बल्ला० ४ ) में० ११॥ जैसे शरीर के अल जबतक शरीर के साथ रहते है तबतक काम के और

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अलग हान स कम जाते हैं वैसे ही प्रकरणस्थ वाक्य सार्थक और प्रकरण ' से अलग करने वा किसी अन्य के साथ जोड़ने से अनर्थक हो जाते हैं : सुनो इसका अर्थ यह है, हे जीव ! तू ब्द की उपासना कर जिस ब्रह्म से जगत् की उत्पत्ति स्थिति और जीवन होता है जिसके बनाने और धारण से यह सब जगन् विद्यमान । - . " हुआ। दें वा ब्रह्म से सचत ई उस कi छोड दूसरे की उपासना न करनी इस चेतनमात्र अखण्डैकरस व्ढरूप में नाना वस्तुओं का मेल नहीं है किन्तु ये सब ? पृथक् २ स्वरूप में परमेश्वर के आधार में स्थित हैं । ( प्रश्न ) जगत् के कारण के कितने होते है ?उ तर) तीन एक निमित्त, दूसरा पादानतीसरा साधारण ५निमित्त । कारण उसको कहते हैं कि जिस के बनाने से कुछ बने न बनाने से न बने, आप स्वयं प्र बने नहीं दूसरे को प्रकारन्तर बना देखे दूिसरा उपादान कारण उसको कहते हैं जिस के बिना कुछ न बने, वही अवस्थान्तर रूप हो के बने और बिगड़े भी। तीसरा सr धारण कारण उसको कहते है कि जो बनाने में साधन और साधारण निमित्त हो

कारण दो के हैं एक सध सुष्टि कारण से बनाने बारने और

निर्मित म कार को

लय कर न तथा सब की व्यवस्था रखनाला मुख्य iनई कारण परमात्मा। |

दूस-परमेश्वर की सष्टि में से पदार्थों को लेकर अनेक विध काय्यान्तर बनाने

वाला साधारण निमित्त कारण जीब 1 उपव्ान कारण प्रकृति परमाणु जिसको सव

संसार के की सामग्री कहते है होने से आप से आप त बन र बखने वह जड न बिगड़ सकती है किन्तु दूसरे के वनाने से बनती और बिगाडने से निगहती है। कहीं २ जड़ के निमित्त से जड़ भी बन और बिगड़ भी जाता है जैसे परमेश्वर के : रचित बीज में गिरने और पाने वृक्षाकार होजाते है और अग्नि पृथिवी जल से - -