पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३७

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शष्टमंसमुखः tt १९७ 2 भी कहते हैं शून्य जड़ पदार्थ इस शून्य में सध पदार्थ अदृश्य कहते हैं जैसे एक विनडु से रेखा, रेखाओं से वलूलाकार होने से भूमि पर्वत।दि ईश्वर की रचना से गनते है और शून्य का जाननेवाला शून्य नहीं होता ॥ १ ॥ दूसरा नास्तिक अभाव से भाव की उत्पत्ति है । जैसे बीज का किये बिना अंकुर उत्पन्न संदेन नहीं होता और बीज को तोड़ कर देखें तो अंकुर का अभाव है जब प्रथम अंकुर नहीं दीखता था तो अभ1व से उत्पत्ति हुई ( उत्तर ) जो बीज का उपमन करता है वह प्रथम ही बीज में था जो न होता तो मर्दन कौन करता और संपन्न कभी नहीं होता ॥ २ ॥ तीसरा नास्तिक-कहता है कि कर्मों का फल पुरुष के है है. - ) के में करने से नहीं fत हृता कितन हंत कर्म फल देखने में अ त दें इ सiले में अनुमान किया जाता है कि कर्म का फल प्राप्त होता ईश्वर के अधीन है जिस कर्म का फल ईश्वर देना चाहे देता है जिस कर्म का फल देना नहीं च।। नहीं 1 देता इस बात से कर्मफल ईश्वराधीन है। ( उत्तर ) जो क र्म का फल ईश्वरधीन हो तो बिना कर्म किये ईश्वर फल क्यों नहीं देता १ इसलिये जैसा कर्म मनुष्य करता है वैसा ही फ ईश्वर देता है । इस से ईश्वर स्वतन्त्र पुरुष को कर्म का फल नही दे सकता किन्तु जैसा कर्म जीव करता है वैसा ही फल ईश्वर देता है ॥ ३ ॥ चौथा नरेतक-- कहता है कि विना निमित्त के पदार्थों की उत्पत्ति होती है जैसा बबूल आदि वृक्षों के कांटे तीक्ष्ण अणिवाले देखने में आ।ते हैं इससे विदित होता है कि जब २ सृष्टि का आरम्भ होता है तब २ श'र।दि पदार्थ विना निमित्त के होते हैं। ( उतर ) जिससे पदार्थ उत्पन्न होता है वही उसका निमित्ल है विनत कटी वृद्ध के कांटे उत्पन्न क्यों नहीं हों १, ॥ ४ ॥ पांचवां नास्तिक-कहता है कि सब पार्थ उत्पत्ति और विनाश वाले हैं इसलिये सब अनित्य है । श्लोकार्टून प्रवच्यामि यदु ग्रन्थकोटिःि । ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्त्र लापरः ॥ यह किसी ग्रन्थ का श्लोक है-नवीन वेदान्ति लग पांचवें नास्तिक की कोटी में हैं क्योंकि वे ऐसा कहते हैं कि जोड़ों प्रन्थों का यह सिद्धान्त है ब्रह्म सत्य जगत् मिथ्या और जीव बूझ से भिन्न नहीं। (उत्तर) जो सब की नित्यता निय है तो सब अनिय नहीं हो सकता।(प्रश्न ) सब की नियता भी अनित्य है जैसे आग्नि कार्यों को नष्ट कर आप भी नष्ट हो जात। है । ( उत्तर ) जो यथावल थ ध