पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२४०

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द ३ 9 स्पर्धप्रकाश !! न मानो तो कठिन से कठिन पाषाण हीरा और पोछाद आदि तोड़ दुकड़े कर गला ! वा भस्म कर देखो कि इनमें परमाणु पृथ २ मिले हैं वा नहीं । १ जो मिले हैं तो ' वे समय पाकर आग २ भी अवश्य होते हैं ॥ १० ॥ ( प्रश्न ) अनादि ईश्वर कोई नहीं किन्तु जो योगाभ्यास से आणिसिदि ऐश्वर्य को प्राप्त होकर सर्वज्ञादि गु- । संयुक्क केवल ज्ञान होता है वही जीव परमेश्वर कहाता है। (उत्तर ) जो अन।दि ईश्वर जगन् का सृष्टा न हो तो साधनों से सिद्ध होने व ले जीवों का आधार जीव नरूप जगत् शरीर और इन्द्रियों के गोलक कैसे बनते इन के बिना जीव साधन नहीं कर सकता जब साधन न होते तो सिद्ध कहां से होता है जीव चाहे जैसा सा धन कर सिद्ध होवे तो भी ईश्वर की जो स्वयं सनातन अनादि सिद्धि है जिस में | आनन्त सिद्धि हैं उसके तुल्य कोई भी जीव नहीं हो सकता क्योंकि जीव का परम ! अवधि तक ज्ञान बढ़े तो भी परिमित ज्ञान और सामथुवाला होता है अनन्त हानि ! और सामर्थ्यबाला कभी नहीं हो सकता देखो कोई भी योगी आजतक ईश्वकृत | सृष्क्रिम को बदलनेहारा नहीं हुआ। है और न होगा जैसे अनादि सिद्ध पर मेश्वर ने नेत्र स दुख आर कान ये सुनन का निबन्ध किया है इस को कोई भी योग ' ! बदल नहीं सकता, जीव ईश्वर कभी नहीं हो सकता ( प्रश्न ) कल्प कल्पान्तर में ! ईश्वर साष्टि विलक्षण २ बनाता है अथवा एकसी ? ( उत्तर ) जैसी कि अब . ! सt पहल था और आग हागीं दु करता: सूचन्द्रम धाता घथा पूर्वसंकल्पयत्। दिवं च टॉथवा । चान्तरिक्ष मथो स्व. ॥ ॰ ॥ ० १० f सू० १०। ०३ ॥ ( धाता ) परमेश्वर जैसे पूर्व कल्प में सूर्य, चन्द्र, विद्युत्र, पृथिवी, अन्तरिक्ष से आदि को बनाता हुआ वैसे ही उसने अब बनाये हैं और आगे भी वैसे ही बनावेगा । इसलिये परमेश्वर के काम विता भूल चूक के होने से सट्टा एकसे ही हुआ करते हैं जो अल्पज्ञ और जिसका ज्ञान वृद्धि क्षय को प्राप्त होता है उसी के काम में भूल चूक हती है ईश्वर के काम में नही । ।प्रश्न) टिविषय में वेदादि शाजो का अविलंब है वा विरोध ? ( उर) अनिरोध है ' ( प्रश्न ) जो अविव है तो:--- तस्मादा एतस्मादात्मन आकाशः लम्भूतः 1 आकाश वायुः : बायोरग्निः। अग्नेर।ः 1 अभ्यः थिवी। टथिया