पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२४२

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२३९ सत्यार्थप्रकाशः ! - - शासकारों ने मिलकर पूरी की है जैसे पांच अन्धे और एक मन्ददृष्टि को किसी ने हाथी का एक २ देश बतलाया उन से पूछा कि हाथी कैसा है १ उन में से एक ने कहा लं, दूसरे ने कहा सूष, तीसरे ने कहा मूसलचौथे ने कहा फाहू, पांचवें ने कहा चौतरा और छठे ने कहा काला २ चार खंभों के ऊपर कुछ भैसासा आकार वाला है ' इसी प्रकार आज कल के अनार्ष नवीन ग्रन्थों के पढ़ने और प्राकृत भाषावालों ने ऋपिप्रणीत ग्रन्थ न पढ़कर नवीन सद्बुद्धिकल्पित संस्कृत और भाषाओं के प्रन्थ पढ़कर एक दूसरे की निन्दा में तत्पर होके झूठा झगड़ा मचाया है इन का कथन वृद्धि- साथू के वा अन्य के मानने योग्य नहीं । क्योंकि जो अन्धों के पीछे अन्धे चलें तो दु ख क्यों न पार्टी १ वैसे ही आज कल के अल्प विधायुक्त, स्वाथ, इन्द्रियाराम पुरुषों की ललिा संसार में नाश करनेवाली है ( प्रश्न ) जद कारण के विना कार्य नहीं होता तो कारण का कारण क्यों नहीं १ ( उत्तर ) अरे भोले भाइयो ! कुछ अपनी बुद्धि को काम में क्यों नहीं लाते ? देखो संसार में दो ही पदार्थ होते हैं, एक कारण दूसरा कार्य जो कारण है वह कार्य नहीं और जिस समय कार्य है। बई कारण नही जबतक मनुष्य स्मृष्टि को यथावत् नहीं समझता तबतक उसको यथावत ज्ञान प्राप्त नहीं होता? • नेप्यायाः सत्वरजस्तमस साम्यवस्थायाः शतेरुपन्नाना परमसूमार्ग पृथ पृथग्वतैमाना तत्त्वपरमाणु प्रथमः संयोगारम्भः संयोगवशेषादवस्थान्तरस्य स्थूलाकार प्रातः सृष्टिच्यते ॥ अनादि नित्य स्वरूप उत्व, रजस् और तमोगुणों की एकात्रस्थारूप प्रकृति से उन जो परमसूक्ष्म पृथक् २ तत्वावयव विद्यमान है उन्हीं का प्रथम ही जो है ! योग का आरम्भ है योग विशेषों से अवस्थान्तर दूसरी अवस्था को सूक्ष्म स्थल है। बनते बनाते विचिन्नरूप बनी है इस से यह संसर्ग होने से सृष्टि कझाती है। भला जो प्रथम मिलने और मिलानेवाला पदार्थ संयोग में है जो संयोग का आदि : और वियोग का अन्त अथत् जिसका विभाग नहीं हो सकता उख को कारण और जो संयोग के पीछे बनता और वियोग के पश्चात् वैसा नहीं रहता वह कार्य कहाठा है जो उ१ कारण ट्रा कारण, कार्य का , कलर्स का कल, साधन का सा 1 बन प्रौर [-प ा वाध्य हना है वह देखता अन्धा, नती वहर और जाना ।