पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२४३

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झामस मुसि: f ९३३ में दिए हुमा मूल है । क्या आंख की , दीपक का दीपक और सूर्य का सूर्य कभी हो सकता हूँ / जो t iजससे उपन्न होता है वह कारण कर जा उत्पन्न होता है बल कार्थ और जो कारण जो कार्यरूप बननेहरा है वह कत्त कहाता है । तलता वधत ने भिव व सतर्क । उभयोरपि दृष्टान्लस्बनयस्तत्वदर्शिः ॥ भगवगत० अ० २ : १६ ! थे। का असत् का भाव तसान आए सन का अभाव आसमान नहीं हुई इन दान का निर्णय तत्वदर्शी लोगों ने जाना है छन्य पक्षपाती आग्रही मलीनात्मा आ विद्वान् लोग इस बात को सहज में कैसे जान सकते हैं? क्योंकि जो मनुष्य विद्वान ' सत्संग होकर पूरा विचार नही करता वह सदा भ्रमजाल में पड़ा रहता है। धन्य! 1 । वे पुरुप हैं कि सब विद्याओ के सिद्धान्तो को जानते हैं और जानने के लिये परिश्रम ' करत है जानकर औरों को निष्कपटता से जनते हैं इससे जो कोई कारण के विना 1 शष्ट मानता दें वह कुछ भी नहीं जानता जब सृष्टि का समय आता हूं तब परमात्मा उन परमसूक्ष्म पदार्थों को इकट्ठा करता है उसकी प्रथम अवस्था से जो परमसूक्ष्म प्रकृतिरूप कारण से कुछ स्थुछ होता है इस का नाम मझतत्वू और जो उससे कुछ स्थूल होता हैउस का नाम आकार और अख़र से भिन्न २ पांच सूक्ष्मभूत , त्वचा, नेत्र, जिह्वा ाण, पाच ज्ञान इन्द्रियांवाश, हरत, पाद, उपस्थ और गुदा, ये पांच कर्म इन्द्रिय हैं और ज्यारवां मन कुछ स्थूल उत्पन्न होता है और उन पश्च तन्मात्रों से अनेक स्थूलवस्था को प्राप्त होते हुए क्रम से पाच स्थूलभूत जिन क आम लोग प्रत्यक्ष देखते हैं उत्पन्न होते है उनसे नाना प्रकार की औषधिया वृक्ष } आदि उन से अन्न, अन्न से वीर्य और वीर्य से शरीर होता है परन्तु आादि सष्टि मैथुनी नहीं होती क्योंकि जब वी पुरुषों के शरीर परमात्मा बनकर न में जीवो | का व संयोग कर देता है तदनन्तर मैथुनी सष्टि चलती है । देखो ' में किस प्रकार शरीर की ज्ञानपूर्वक दृष्टि रची है कि जिस को विद्वाभ् लोग देखकर आश्चर्य मानते हैं । । भीतर हाड़ों का जोड़, नांड़ियों का धन, मांस का लेपन, चमडी का ढक्कनप्लीहा, ? यकृत, फेफड़ापंखा कला का स्थापनजीव का सयोजनशिरोरूप मूलरपन, लम 1 नखादि का स्थापन, आंख की अतीव सूक्ष्म शिरा का तारबत् प्रन्थनइन्द्रियों के सार्यों का प्रकाशनजी के जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति अवस्था के भोगने के लिये स्थान ! - ० • में