पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२४४

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२३४ त्यथक: । विशेषों का निर्माणसब धातु का विभागकरणकलाकौशल स्थापनादि अद्भुत सृष्टि को बिना परमेश्वर के कौन कर सकता है ? इसके बिना नाना प्रकार के रन धातु से जड़ित भूमि, विविध प्रकार वट वृक्ष आदि के बीजों में अति सूक्ष्म रचना, ! असंख्य हरित, श्वेत, पीत, कृष्ण, चित्र मध्यरूओं से युक्त पत्र, पुपफलमूलनि मणमिष्ट, धार, कटुक, कष।य, तिक, अम्लादि विविध रस सुगन्धदि युक्त पत्र पुष्पफलअनकन्द, मूलादि रचनअनेकानेक क्रोड़ों भूगोल सूर्य चन्द्रादि लोक- निर्माणधारणभ्रामणनियों में रखना आदि परमेश्वर के विना कोई भी नई कर सकता। जब कोई किसी पदार्थ को देखता है तो दो प्रकार का ज्ञान उत्पन्न होता है एक जैसा वह पदार्थ है और दूसरा उस में रचना देखकर बनानेवाले का। ज्ञान है जैसा किसी पुरुष में सुन्दर आभूषण जल में पाया, देखा तो iवदित हुआ कि यह सुवर्ण का है और किसी बुद्धि समन् कारीगर ने बनाया है इसी प्रकार यह 1 नाना प्रकार सृष्टि में विविध रचना बनानेवाले परमेश्वर को सिद्ध करती है। (प्रश्न) । मनुष्य की सृष्टि प्रथम हुई या पृथिवी आदि की ' (उत्तर) पृथिवी आदि की, क्योंकि पथित्यादि के बिना मनुष्य की स्थिति और पालन नहीं हो सकता ( प्रशरन ) सृष्टि की आदि में एक वा अनेक मनुष्य उत्पन्न किये थे वा क्या, १ ( उत्तर ) अनेक क्योंकि जिन जीवों के कर्म ऐश्वरीय सष्टि में उत्पन्न होने के थे उन का जन्म सृष्टि की आदि में ईश्वर देता क्योंकि ‘मनुष्या अरषयश्व थे । ततो मनुष्या अजायन्त" यह यजुर्वेद ( और उसके ब्राह्मण ) में लिखा है इस प्रमाण से यही निश्चय है कि आदि में अनेक अत सैकड़ों सहाँ मनुष्य उत्पन्न हुए और सृष्टि में देखनेसे भी निश्चित होता है कि मनुष्य अनेक सा बाप के सन्तान हैं 1 ( Cश्व ) आदि सष्टि में मनुष्य आदि की बाल्या, युवा व घृद्धावस्था में सृष्टि हुई थी अथवा तीनों में 3 ( उतर ) युवावस्था । में, क्योंकि जो बालक उत्पन्न करता तो उनके पालन के लिये दूसरे मुख्य आवश्यक होते और जो वृद्धावस्था में बनाता तो मैथुन सृष्टि न होती इसलिये युवावस्था में | सृष्टि की है। ( मरन ) कभी सृष्टि का प्रारम्भ है वा नहीं है ( उतर )-नहीं, जस ! दिन के पूर्व रात और रात के पूर्व दिन तथा दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन बगवर चला आता है इसी प्रकार सष्टि के पूर्व प्रलय और प्रलय के पूर्व सृष्टि तथा सष्टि के पीछे प्रलय और प्रलय के आगे सiट अनादि काल से चक्र चला आता है। इसकी छादि का अन्त नहीं किन्तु जैसे दिन व रात का आर म्भ और अन्त देखते | में आता है उसी प्रकार सृष्टि और प्रलय का आादि अन्त होता रहता है क्योंकि ' ।