पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५

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जो सदा हर्षित, शोकरहित और दूसरों को हर्षित करने और दुखों से पृथक् रखने वाला “यः स्वापयति स देवः” जो प्रलय के समय अव्यक्त में सब जीवों को सुलाता “यः कामयते काम्यते वा स देव” जो सब में व्याप्त और जानने के योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम “देव” है। (कुबि आच्छादने) इस धातु से “कुबेर” शब्द सिद्ध होता हैं । “यः सर्वे कुम्बति स्वव्याप्याच्छादयति स कुबेरो जगदीश्वरः” जो अपनी व्याप्ति से सबका अच्छादन करे इससे उसे परमेश्वर का नाम “कुबेर” है । (पृथु विस्तारे) इस धातु से “पृथिवी” शब्द सिद्ध होता है । “यः पृथते सर्वजगद्विस्तृणाति स पृथिवी” जो सब विस्तृत जगत् का विस्तार करनेवाला है इसलिये उस परमेश्वर का नाम पृथिवी है । (जल वातने) इस धातु से जल शब्द सिद्ध होता है “जलति घातयति दुष्टान् सघांतयति अव्यक्तपरमाण्वादीन् तद् ब्रह्म जलम्” जो दुष्टों का ताडन और अव्यक्त तथा परमाणुओ का अन्योऽन्य संयोग वा वियोग करता है वह परमात्मा “जल” संज्ञक कहाता है । (काशृ दीप्तौ) इस धातु से “आकाश” शब्द सिद्ध होता है “यः सर्वतः सर्व जगत् प्रकाशयति स आकाशः” जो सब ओर से जगत् का प्रकाशक हैं इसलिये उस परमात्मा का नाम “आकाश” है । (अद भक्षणे) इस धातु से “अन्न” शब्द सिद्ध होता है ।

अद्यतेऽत्ति च भूतानि तस्मादन्नं तदुच्यते ॥ १ ॥

अहमन्नमहमन्नमहमन्नम् । अहमन्नादोमन्नादोमन्नादः ॥ २ ॥ तैत्ति॰ उपनि॰ । अनुवाक २ । १० ॥ अत्ताचराचरग्रहणात् ॥ वेदान्तदर्शने अ० १ । पा० २ । स० ६ ॥

जो सब को भीतर रखने सब को ग्रहण करने योग्य चराचर जगत् का ग्रहण करनेवाला है इससे ईश्वर के “अन्न” “अन्नाद” और “अत्ता” नाम हैं । और ! जो इसमें तीन बार पाठ है सो आदर के लिये हैं जैसे गूलर के फल में कृमि उत्पन्न होके इसी में रहते और नष्ट होजाते हैं वैसे परमेश्वर के बीच में सब जगत् की अवस्था है । (वस निवासे) इम धातु से “वसु” शब्द सिद्ध हुआ है। “वसन्ति भूतानि यस्मिन्नथवा य सर्वेषु वसति स वसुरीश्वरः” जिसमें सब आकाशादि भूत वसते हैं और जो सव में वास कर रहा है इसलिये उस परमेश्वर का