पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५१

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अष्टमुलस। २ ४ १ 3 अtर्ष रुप से साईं जंगल शपनी परिधि में जूता रहता है किन्तु किसी ) लोक के चारों ओर नहीं घूमता वैसे ही एक २ ब्रह्माण्ड में एक सूर्य प्रकाशक ) : - इंट में र म१ जiक लान्तर काय ई, जे रो tमें सपा अब आतः श्रथ० क॰ १४अ० १ । से० १ ॥ ; ने में ९१६ चन्द्रा य स प्रकाशित होता है वे से ह्रीं पृथयttद लोक भी सूर्य के y ' s ही म प्रकाशित होते है परन्तु रात और दिन सदा वर्तमान रहते हैं Fiकि पृथियादि tकों के घूमने में जितना भाग सू चें के सामने आता है उसने में दिन ‘में हर fतनई म "थति आड़ म जाता हैं उतन स रत अर्थात् उदय,

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अन्त, सैप, म ग्रा६परमैिं अItद जतन कलावयव है व दशददशान्तर में है। - । • ' समान रहते अत् जनव आरयोव त्रें म सूर्योदय होता है उस समय पताल अर्थात ‘'नमेरिका में अख्त iता है और जब आईंवर्दी में अस्त होता है तब ! पताल देश में उदय होता है जब आर्यावर्क्स में मध्य दिन का समय रात्रि है उसी । । समय पातशत में मध्य रात और मध्य दिन रहता है जो लोग कह ये घूमना और किवी नहीं सूती वे सब अज्ञ हैं क्यों िजो ऐसा होता तो कई सहस्त्र वर्ष के दिन और रात होते अर्थात् सूर्य का नम ( मन’ ) पृथिवी से लाख गुना आज अंrर क्रांड कोष दूर है से रईि के सामने पड़ <में तो बहुत देर लगती और राई के घूमने में बहुत समय नह लगता वैसे ही पृथिवी के घूमने से यथा ग्रोग्य दिन रात होता है सूर्य के घूमने से नहीं । और जो सूर्य का स्थिर कहते है । वे भी ज्योतिर्विद्यावित नई क्योंकि यदि सूर्य न घूमता होता तो एक रशि स्थtन से दूरt i अथात् स्थान का प्रश्न न होता अर गुरु पदार्थ (वना व्म अकाश में निथत स्थान पर कभी नही रह सकता । और जो जैनी कहते हैं कि पृथिवी घूमती नहीं किन्तु नीचे २ चली जाती है और दो सूर्य और दो वन्द्र केवल जबू- द्वीप में बतलाते हैं वे तो गहरी भांग के के नशे में निमग्न है कि यां १ जो नन्चेि २ चली जाती तो चारों ओर वायु के चक्र न बनने से पृथिवी छिन्न भिन्न होती और नि नम्थलों में रहनेवालों को यु का स्पर्श न होता नीचे।लों को अधिकहोता और एकसी बायु की गति होती, दो सूर्य और चन्द्र होते तो रात और कृष्णपक्ष का ! होना ही नष्ट भ्रष्ट होता इसलिये एक भूमि के पास एक चन्द्र और अनेक भूमियों के मध्य में एक सूर्य रहता है । ( प्रश्न ) सूर्य चन्द्र और तारे क्या वस्तु है और C G

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