पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५३

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है उसी प्रकार परमात्मा राजराजेश्वर की वेदोक नीति अपने अपने साष्टिरूप सघ राज्य में एकसी है । ( प्रश्न ) जब ये जीव और प्रकृतिस्थ तत्व अनादि और ( ईश्वर के बनाये नही है तो ईश्वर का अधिकार भी इस पर न होना चाहिये क्योंकि सत्र स्वतन्त्र हुए ? ( उत्तर ) जैसे राजा और प्रजा समकाल में होते हैं और राजा के अधीन प्रजा होती है वैसे ही परमेश्वर के आधीन जीव और आल पदार्थ हैं। S। जब परमधर सध स।ष्ट्र का बनान, जाव क कम फ ि , सत्र का यथावत रक्षक और अनन्त समर्य बाला है तो अरुप समर्य भी और जड पदार्थ उसके अधीन क्यों न हों ? इसलिये जीव कर्म करने मे स्वतन्त्र परन्तु कर्म के फल भोगने । में ईश्वर की व्यवस्था परतन्त्र है वैसे ही सर्वशक्तिमान् सiष्ट संहार और पालन स के सव विश्व का करता है । इके अारी विद्या, अविद्याबन्ध और मोक्ष विषय में लिखा जायगा, यह आाठवां समुल्लास पूरा हुआ ॥ ८ । इति श्रीमदयानन्द सरस्वती स्वामिते सत्यार्थप्रकाश ‘ सुभाषाविभूषिसे स्ट्ष्युत्पतिस्थितियलबि- यजटः समुल्लः संवण’ : ८ ?