पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५५

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समसमुझ: ॥ २५

रूप न जान पड़े अन्य में अन्य बुद्धि होवे वह अविद्या कहती है अर्थात् कर्म उपासना अविद्या इसलिये है कि यह बाह्य और अन्तर क्रिया विशेष है ज्ञान विशेष नहीं, इसी से सत्र में कहा है कि बिना शुद्ध कर्म और परमेश्वर की उपासना के मृत्यु दुःख से पर कोई नहीं होता अर्थात् पघिन कर्मपवित्रोपासना और पवित्र ज्ञान से मुक्ति और अपबित्र मिथ्योभाषणादि कर्म पाषाणमूर्यादि की उपासन। अर मिथ्य ज्ञान से बन्ध होता है कोई भी मनुष्य क्षण मान भी कर्म उपासना औ र ज्ञान से रहित नहीं होता इसलिये धर्मयुक्त सत्यभाषणदि कर्म करना और मिथ्या- | भाषणIदि आधर्म को छोड़ देना ही मुक्ति का साधन है। ( प्रश्न ) मुक्ति किसको प्राप्त नहीं होती है ( उत्तर ) जो बद्ध है । ( प्रश् ) यद्ध कम है ' ( उत्तर) जो ' अधर्म अज्ञान में फंसा हु अr जीव है ( प्रश्न ) बन्व और मोक्ष स्वभाव से होता है वा निमित्त से ' ( उत्तर ) निमि त्त से, दकि जो स्वभाव से होता तो बन्ध और मुक्ति की निवृत्ति कभी नहीं होती ( प्रश्न ) न नेरधा न चारपत्तन बढा न च साधक: । । न मुछुने वें मुक्त इत्पष परमाता ॥ गडपादीयकारिका : - २ । कां२ ३२ ॥ यह श्लोक साहूक्योपनिषद पर हैजब त्रह होने से वस्तुत, जीव का निरोध अथेत् न की आवरण म आया न जन्म लें ता न न्ध k iर न सा अथोत् न कुछ साधना करनेहारा है, ने छूटने की इच्छा करता और न इसकी कभी मुक्ति है क्योंकि जब परमार्थ से बन्ध ही नहीं हुआ तो मुक्ति क्या १ ( उत्तर ) यह नवीन बेट्रान्तियों का कहना सत्य नहीं क्योंकि जीव का स्वरूप अल्प होने से आ- वरण में आत, शरीर के साथ प्रकट दiन खप जन्म लता, पाठ्ष क्रम के फल भगरूप बन्धन में फ धता, उसके खून का साधन करता, टु ख छूटने की इच्छा करता और दु:खों से छूटकर परमानन्द परमेश्वर को प्राप्त होकर मुकि को भी भोगता है ( प्रश्न ) ये सब धर्म देह और अन्तकरण है जवि के नहीं क्योंकि जीव तो पप पुण्य से रहित साक्षीमात्र है शीतोष्णदि शरीIदि के धर्म है आदमा निर्वोप है ( उत्तर ) देह और अन्तकरण जड़ हैं उनको शीतोरण प्राप्ति और भोग नहीं है जो चेतन मनुष्यादि प्राण उसको स्पर्श करता है उसी को शथित उष्ण का भान और भोग होता है वैसे प्रण भी जड हैं न उनको भूख न पास iन्तु ओ