पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५६

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सत्याप्रकाशः ?॥ है । प्राणवाले जीव को दुधा तृषा लगती है वैसे हीं मन , भी जड़ है न उसको अर्ष न शोक हो सकता हैकिन्तु मन से हर्ष शोक दु:ख सुख का भोग जीव करता है जैसे } ब३ि करण श्रोत्रादि इन्द्रियों से अच्छे बुरे श।दि विषयों का ग्रहण कर जीव | सुखी दुखी होता है वैसे ही आन्त फरण अथात् मनबुद्धि, चित, अहंकार से संकल्प विकल्प, निश्चय, स्मरण और अभिमान का करनेवाला ण्ड और मान्य का भागी होता है जैसे तलवार से मारने वाला दण्डनीय होता है तलयार नही होती वैसे ही देन्द्रिय अभ्त कर ण दौर प्रारूप साधनों से अच्छे बुरे कमें का कर्ता जवि सुस टु ख का भोक्ता है जीव क का साक्षी नहीं किन्तु क र्ता भोक्ता है । काँ का साक्षी तो एक अद्वित्तीय परमात्मा है जो कर्म करनेवाला जंव है वहीं कमरों में लिप्त होता है वह ईश्वर साक्षी नहीं ' ( प्रश्न ) जत्रि ब्रह्मा का प्रतिबिंब हैं जैस दeर्षण के टूटने फूटने से विम्ब की कुछ हानि नहीं होती इसी प्रकार अन्तःकरण में ब्रह्मा का प्रतिविम्घ जीब तबतक है कि जबतक बह झतकर णपाधि है जब अ- | न्त:करण नष्ट होगा तब जीय मुक्त है । ( उत्तर ) यह बालकपन की बात । क्योंकि प्रतिचिन्ष साकार का सरकार में होता है जैसे मुख और दर्पण आकारवाले ! है और पृथ भी हैं जो पृथक् न हो तो भी प्रतिबिम्ब नहीं हो सकता ब्रह्मा राकार सर्वव्यापक होने से उसका प्रतिबिम्ध ही नहीं हो सकता । ( प्रश्न ) देखो । गम्भीर स्वच्छ जल में निरकार और व्यापक आकाश का आभास पडतों है इसी ! प्रकार स्वच्छ अन्त करण में परमात्मा का आभास है इसलिये इसको चिठाभास ( कहते हैं ( उत्तर ) यह बालबुद्रि का मिथ्या प्रलाप है क्योंकि अकाश दृश्य नहीं तो उसको आख से कोई भी नहीं देख सकता जब आकाश से स्थूल ब।यु को आच से नहीं देख सका तो आIकाश को क्योकर देख सकेगा । (प्रश्न ) यह जो ऊपर को नीला और धुंधलापन दीखता है बहू आकश है या नहीं । ? ( उतर ) ना ' | ( प्रश्न ) तो वह क्या है ' ( उत्तर ) अलग २ पृथिवी जल और अग्नि के नखरेणु दीखते हैं उससे नीलता दीखती है वह अधिक जल ज िव पेता है सो वह नील जो चूधलापन छीतता है वह पृथिवी से धूल उडइकर वायु में घूमती है बहू दीखती और ! उसी का प्रतिबिम्ध जल बा पंण में दीखता है आकाश का कभी नही 13 प्रश्न) जैसे घटाकाश, मटकाश, सेवाकाश और महाकाश के भेद व्यवहर से होते । वैसे ही श्रद्घा के ब्रह्माण्ड और न्त करण उपाधि के मद से ईश्वर और जय नाम । हांता है जब घदि नष्ट होजाते हैं तब महाकाश ही कहाता है । ( उत्तर ) ! ।