पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५८

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२४ ८ सत्यार्थनता: ।


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फिर मम याण से झूठी कल्पना करने और मिथ्या बोलनेवाला नहा कल्पित और 3 ‘ियावादी हुआ वा नहीं १ । ( उत्तर ) हो, हमको इष्ठापत्ति है ! वह रे झूठे वेदातियो ' तुमने सत्य स्वरूपसत्यकाम, सत्य सकंल्प परमात्मा को मिथ्याचारी कर दिया क्या यह तुम्हारी दुर्गति का कारण नहीं है १ किस उपनिषद् सूत्र वा वेद में लिखा है कि परमेश्वर मिथ्या सढप और मिथ्यावादी है ? क्योंकि जैसे किसी चोर के कोतवाल को दण्ड दिया अन् ‘उलटि चोर कोतवाल को दण्डे’ इस कहानी के सदृश तुम्हारी बात हुई यह तो वात उचित है कि कोतवाल चोर को दण्डे परन्तु यह बात विपरीत है कि चोर कोतवाल को दण्ड देवे वैसे ही तुम मिथ्या सद्द और सिभ्यावादी होकर वह अपना दोष नहा में व्यर्थ न गाते हो । जो नह सि नयाज्ञानी, मिन्यावादी, मिथ्याकारी होवे तो सब अनन्त ब्रह्म वैसा ही होजाय क्यां वई एकरस है सत्यस्वरूप सत्यमानी सत्यवादी और सत्यकारी है ये सब दोष तुम्हार हैं ब्रह्मा के नई जिसको तुम विद्या कहते हो वह अविद्या है और तुम्हारा अध्यान रोप भी मिथ्या है क्योंकि आप ब्रह्म न होकर अपने को ब्रह्म और खेल को जवि 3 मानना यह दिया ज्ञान नहीं तो क्या है, जो सर्वव्यापक है वह परिच्छिन्न अज्ञात और बन्ध में कभी नहीं गिरता क्योंकि अज्ञात परिच्छिन्न एक देशी अल्प अल्प जाख दाता : सर्वज्ञ सर्वव्याप। वह नई ! अब मुक्त बन्ध का वर्णन करते हैं ! ( प्रश्न ) मुक्ति किसको कहते हैं ? ( उत्तर ) ‘‘मुश्चन्ति पृथम्भवन्ति उन । यन्यां सा मुश्कि ' जिस में छूट जाना हो उसका नाम मुक्कि है । ( प्रश्न ) सि . १ से वैट जन 3 ( उत्तर ) जिससे छूटने की इच्छा सब जीव करते है । ( प्रश्न । फिस से छूटने की इच्छा कर त है ? ( उतर ) जिससे छूटना चाहते हैं ।( प्रश्न) किससे छूटना चाहते है ' ( उत्तर ) टु ख से ' ( प्रश्न ) छूट कर किसको प्राप्त होते और कहां ( उत्तर ) मुम्य को प्राप्त होते और झ में रहते ! रहते हूं ? ( प्रश्न ) जुलिस र बन्ध किन २ बातों से होता है ? ( उत्तर ) परमेश्वर नी अ15 पोतने, 384, प्रविदा, ऊस टू कुमार, बुरे ट्ध मन से अलग रहने व भभावपग्गपशप शिष पपनरहित न्याय में की वृद्धि करने, युवा * , र. 6ार से ५-५६र की नन r ऊं। र उपासना 'ग्रीन योगा यस रन, दिशा ह, १८1 ‘रा ऐसे में पुनौर्थ पर ान की उन्नति करने, सध से उत्तम

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