पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५९

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नसमुल्लास: । २४९

साधनों को करने और जो कुछ करे वह सब पक्षपातरहित न्यायधर्मानुसार ही करे इत्यादि साधनों से मुक्ति और इनसे विपरीत ईश्वराझाभड़न करने आदि काम से बन्ध होता है । ( प्रश्न ) मुक्ति में जीव का लय होता है वा विद्यमान है ? रहता ( उत्तर ) विद्यमान रहता है । ( प्रश्न ) कहां रहता है ? ( । उत्तर) ब्रह्म में ( प्रश्न ) ब्रह्म कहां है और बहू मुक्त जीव एक ठिकाने रहता है वा स्वेच्छाचारी होकर सर्वत्र विचरता है ' ( उत्तर ) जो ब्रह्म सर्वत्र पूर्ण है उसी में मुक्क जीव अ व्याहतगत अथों उसको कहीं रुकावट नहीं विज्ञान आनन्दपूर्वक स्वतन्त्र वि- चरता है ( प्रश्न ) मुक्त जीव का स्थूल शरीर होता है वा नहीं १ ( उत्तर ) नहीं रहता ( प्रश्न ) फिर वह सुख और आनन्द भोग कैसे करता है ' ( उत्तर ) उस के सरय सल्पादि स्वाभाविक गुण सामर्थ्य सब रहते हैं भौतिकसन नहीं रहता, ज। झण्वन आधे भवांत, स्पर्शयल वरझवति, प्रश्रय च भवांत, रसयन रसना भवति, जिघन् ऋण अवाति, मवानो मना भवति, बोधयन् बुद्धिर्भवति । चेतयश्चित्तर वीणों भवांस ॥ शतपथ ० क०ि १४ ॥ मोक्ष में भौतिक शरीर ा इन्द्रियों के गiल क जोवारमा के साथ नहीं रहते किन्तु आपने स्वाभाविक शुद्ध गुण रहते हैं जब सुनना चाहता है तय क्षेत्रस्पर्श करना चाहता है तब वच, दुखन के सर्वोल्प से , स्वाद के अर्थ रसना, गन्ध के लिये त्राण, सकंल्प विकल्प करने समय मननिश्चय करने के लिये बुद्धि, स्म- , | रण करने के लिये चित्त और अहसार के अर्थ अहकारू अपनी स्वश शक्षिक से जी- बामा मुक्ति में हो जाता है और सद्भरमान शरीर ठता हं के स शरीर को आधार रहकर इन्द्रियों के गोलक के द्वारा जीव स्वकार्य करता है। वैसे अपनी शकि से मक्ति में सब आनन्द भोग लेता है । ( मन ) उसकी शाति के प्रकार की और ! कितनी है ? ( उतर ) मुख्य एक प्रकार की शक्ति है परन्तु , परIक्र, आकर्षण प्रेरणा, गति, भीषणविवेचन, क्रिया, उत्साह, रमरण, निश्चय, इच्छा, प्रेमइप, संयोग, विभागसंयोजक, विभाज, श्रवणस्पर्शनदर्शनस्त्रदन और गधग्रहण तथा ज्ञान इन २४ चौबीस प्रकार के समक्ष्युक जीब हैं । इससे मुहिम में भी अनन्द की प्राप्ति भोग क ता है जो मुक्ति में जीब का लय होता तो मुक्ति का मुख । - ३२