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नाम “वसु” है । (रुदिर् अश्रुविमोचने) इस धातु से “णिच्” प्रत्यय होने से “रुद्र” शब्द सिद्ध होता है । “यो रोदयत्यन्यायकारिणो जनान् स रुद्रः” जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रुलाता है इससे उस परमेश्वर का नाम “रुद्र” है ॥

यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति यद्वाचा वदति तत् कर्मणा करोति यत् कर्मणा करोति तदभिसम्पद्यते ॥

यह यजुर्वेद के ब्राह्मण का वचन है । जीव जिसका मन से ध्यान करता उसको वाणी से बोलता, जिसको वाणी से बोलता उसको कर्म से करता, जिसको कर्म से करता उसी को प्राप्त होता है । इससे क्या सिद्ध हुआ कि जो जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है । जव दुष्ट कर्म करनेवाले जीव ईश्वर की न्यायरूपी व्यवस्था से दुःखरूप फल पाते तब रोते हैं और इसी प्रकार ईश्वर उनको रुलाता है इसलिये परमेश्वर का नाम “रुद्र” है ।।

आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नर सूनवः । ता यदस्यायनं पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः ॥ मनु० अ० १ । श्लोक १० ॥

जल आर जीवों का नाम नारा है वे अयन अर्थात् निवासस्थान हैं जिसके इसलिये सब जीवों में व्यापक परमात्मा का नाम “नारायण” है। (चदि आहादे) इस धातु से “चन्द्र” शब्द सिद्ध होता है। “यश्चन्दति चन्दयति वा स चन्द्रः” जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है इसलिये ईश्वर का नाम “चन्द्र” है । (मगि गत्यर्थक) इस धातु से “मङ्गेरलच्” इस सूत्र से “मङ्गल” शब्द सिद्ध होता है “यो मङ्गति मङ्गयति वा स मङ्गलः” जो आप मङ्गलस्वरूप और सब जीवों के मङ्गल का कारण है इसलिये उस परमेश्वर का नाम “मङ्गल” है । (बुध अवगमने) इस धातु से “बुध” शब्द सिद्ध होता है । “यो बुध्यते बोधयति वा स बुधः” जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है इसलिये उस परमेश्वर का नाम “बुध” है । “बृहस्पति” शब्द का अर्थ कह दिया । (ईशुचिर् पूतीभावे) इस धातु से “शुक्र” शब्द सिद्ध हुआ है “यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः” जो अत्यन्त पवित्र और जिसके सङ्ग से जीव भी पवित्र हो जाता है इसलिये ईश्वर का नाम “शुक्र” है । (चर गतिभक्षणयोः) इस धातु से “शनैस्” अव्यय उपपद होने से “शनैश्चर” शब्द सिद्ध हुआ है “यः शनैश्चरति