पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६०

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२५ o हत्याक्रातू: कौन भोगता है और जो जीव के नाश ही को मुक्ति समझते हैं वे महमूह है क्योंकि मुक्ति जब क्री यह है कि दु.रो से छूटकर आनन्दस्वरूप सर्वव्यापक अनन्त प रमेश्वर में जीव का आनन्द में रहना ! देखो वेट्टान्व शारीरिकों में: श्रभाव वाइररह लेक्चू ॥ बदान्तद० ४ 1 ४ है। १० है॥ जज वादरि व्यासजी का पिता है वह मुकि में जीव का और उसके साथ सन 1 का भाव मानता है अर्थी जीव और मन का लय परजुरज्ञ न नहीं मानने वैसे ही.- भावं मिनिर्विकल्प मलनात् ॥ बेदान्तद० ४ 1 ११ ॥ और जैमिनि आचार्य मुक्क पुरुष का मन के समान सूक्ष्म शरीर, इन्द्रियों और प्राण आदि को भी विद्यान सनते हैं अथभाव नहीं ॥ द्वादशाहभ्यविधे बदराणोsतः है। वेदान्तद० ४ ४ १२ ॥ यस मुनि सुiके से भाब आर आi इन दोनों को मानते हैं अर्थात् गृढ़ । स।म ध्वंयुक्त जीव मुक्ति में बना रहता है घ पवित्रता, पापावर ण, दु:ख, अज्ञानार्षद का भय मानते हैं ? यद उच टित न्ffमें दनल लढ । - बुद्देश्य न् 2वट तामहुद्दे पर गत t कठ० छ० २ 1 ब० ६ । ० १० t । जध मुद्र मनचुक पय दानेन्द्रिय जीव के साथ रतहैं और बुद्धि का नि चर ६थर दना उस पर श्वेत प्रोन् पर्वत कहत हूं ! व ग्राम अपहृतपा विजह विमृद्धविशोकोविजि- ? घ Sपासः सव। : रसल्सक्ल्यः सोSन्टव्स: स वि- ' जिज्ञसितः लश्व वनति सत्रांस्व कन् यस्त । मरमनमछुवि बिजनीति ॥ छान्दो० प्० ८। । खं० ७ ? ! म० १ t स का शुद रतन देन का लेतiन् कामान् पप ५२तु , न ॥ में r' न कि केर को एन ए आई यहनान ‘ई’ ,