पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६१

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नवमुल: !! २५१ पासते तस्मातेषा५ सवें च लोका वाताः लवं व कामाः स सच लोकानाप्नोति स्व५श्व कामन्यतमात्मानमलुवि- य iवेजनाते ॥ छान्दो ० ०, ८ । खं० १२। क॰ ५। ६ ॥ के मघवन्दएवं वह इ६ आंध्रप्रस्त पुल्ला नदय5झुलस्या- शरीर स्यात्मनोधिष्ठानमासो वे रूश्दएः प्रियानियाभ्यां न वै सशरीरस्थ सतः पियात्रियोरपहनिरस्त्यवीर वब सन्नै न { प्रेया ये शः : ॥ छान्द॰ अ० ८ । एवं ० १२ । मं० १ ॥ जा परमात्मा अप५६ पल सर्ष प्राप, ज, न्यु, शकि, ा, पिपास से रहित सर जाम सय कल्प है उसकी खोज और उसी की जानने की इच्छा करनी चाहिये जिस परमात्मा के सम्बन्ध से मुक्त जीव सब लोको और सब काम को प्राप्त होता हूं जो प६मात्मा को जान न , साधन आर अपने को शुद्ध करना जानता है तो यहू मुक्ति को प्राप्त जी शुद दिव्य नेत्र र शुद्ध मन से कामों को दखता प्रद हस्त हु आ रण करता ६। य झा अर्थात् दह्नॉय परमात्मा । - - _ म स्थित हो समक्ष सुख को अगश्ते दें अf इस पर मात्मा का जो iके लय का अन्तधीमी आपस है उसकी उपासना मुक्ति को अंत कंए नेवाले विद्वान् लाश कर त हैं डस से उनको लव लोक और सब काम प्राप्त हiत है अर्थात् जो २ संकल्प करते हैं वह २ लोक और वह २ काम प्राप्त होता है और वे मुक्त जत्रि स्थूल शरीर छोड- कर संकल्पमय शा' में पर मेश्वर में विदरते है जो शरीर वाले से आकाश क्यrके होते हैं वे सांसारिक दुःख से रहित नहीं हो सकते ज से इन्द्र प्रजापति ने कहा है से कि हे परसपूजित धन्युक पुरुष ' यह स्थूल शरीर पर बन है और जैसे सिंह के मुख में बकरी होने से यह शरीर मृत्यु के स ब के बीच है मो शरीर इस मरण और शरीररहित जीबामा का निवासस्थान है इसीलिये यह जीव सुख और दु ख से सदा ग्रस्त रहता है क्योंकि शरीर सहित जीव की स्मारक प्रसन्नता कf iन- वृत्ति होती ही हैऔर जो शरीररहित मुरत जबामा प्रश् म रहता है दमा सामा- रिक सुख दु ख का पछ भी नहीं होता किन्तु सदा आन्द में रखा है ।(पवन) । जीव मुक्ति को प्राप्त होकर पुनजन्म मरणरूप डु ख में कभी न हैं या नहीं '? क्योंकि. r