पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६२

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२ा ? न च पुनवक़्ते न च पुनरावक़्ते इति ॥ छान्दो० प्र० ८। खं॰ १५ ॥ अनावृत्तिः शब्ददलावृत्तिः शब्दात् ॥ वेदान्त द० । अ० ४ । ६० ४ । सू० ३३ ॥ यद् गत्वा न निवर्लन्ते तलाम परम सम 7 भगवद्गीता० ॥ इत्यादि वचन से विदित होता है कि मुक्ति वही है कि जिससे निवृत्त होकर पुन. संसार में कभी नहीं आता। ( उत्तर ) यह बात ठीक नहीं क्योंकि वेद में . इस बात का निपध किया है 1 - कस्बें जून कतमस्यमृतां मनामढ़े चारु देवस्य नाम । को न सह्या अदितये पुन त् तिर च दृशे तर चो१। अगलवेयं प्रथमस्यामृतां सनामक वार्ड देवस्य नाम । स नों मुद्दा अदितये पुनंदत् तिरं च दृशे५ सात व 7 २ ॥ ऋ० से ७० १ । ० २४ । में० १। २ ॥ इदानीसिव सर्वत्र नाट्यन्तोच्छेदः 7३ ॥ सांख्य० अ० १। दु० १५९ ! ( प्रश्न ) हम लोग किस का नाम पाविन जाने १ कौन नाशरहित पदार्थों के मध्य में वर्तमान दंच सदा प्रकाशखरूप है इसको मुक्ति का सुख भुगाकर पुन इस संसार में जन्म देता और माता पिता का दर्शन करता है ? 11 १ ॥ उत्तरहम इस बम1 काशस्वरूप अनादि सट्टा मुक्त परमात्मा का नाम पवित्र जानें जो हमको मुक्ति में आनन्द भुग कर पृथिवी से पुन: माता पिता के सम्बन्ध में जन्म देकर माता पिता की 1 दर्शन कराता है वही परमात्मा मुक्ति की व्यवस्था करता व का स्वामी है ।!!जैसे इस समय बन्य मुतजीव हैं से ही सर्वदा रहते हैं अत्यन्त विच्छेद बन्ध मुक्ति का भी नहीं होता किन्तु बन्ध iर मुमुक सा नहीं रही ॥ ३ ॥ ( प्रश्न है 1 तदन्तti Sपमें। दुःखजन्मत्रवृत्तिदोपमियाज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदन- न्तरपयदपः t tपद० - १ 1 ल० २२ : २ ॥ R 3