पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६३

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मसमुलसt। १११ A ===== .. जो दुःख का अत्यन्त विच्छेद होता है वही मुक्ति कहती है क्योकि जब मिथ्या ज्ञान अविद्या, लोभादि दोष, विषय दुष्ट यसनों में प्रवृत्ति, जन्म और दु:ख का उत्तर के छूटने से पूर्व के नेत्त हां हीं से साक्ष ांता जो के सदा बना रहता है। ( उत्तर ) यह आवश्यक नही है कि अत्यन्त शब्द अध्यन्साभाव ही के का ' ' नाम होने जैसे ‘‘अत्यन्त दुःखमत्यन्त सुख चास्य वर्द्धते ’ बहुत दुःख और बहुत सुख इस मनुष्य को है इससे यही विदित होता है कि इसको बहुत सुख वा दुख है इसी प्रकार यहां भी अत्यन्त शब्द का अर्थ जानना चाहिये । ( प्रश्न ) जो सुक्ति से भी जीव फिर आता है तो वह कितने समय तक मुक्ति में रहता है ' (उत्तर): ते ब्रह्मलोकेड परान्तकाले परमृताः परिमुच्यन्ति सर्वे ॥ मुण्डक के ३ । ० २ । मं॰ ६ ॥ व मुक्त जब मु त में प्राप्त हो चझ में आनन्द को तबतक भरा पुन: महाकल्प के पश्वात मुक्ति मुख को छोड़ के संसार में आते हैं । इसकी संख्या यह है कि तेतालीस लाख बीस सह वर्षों की एक चतुर्थीगी दो सहन चतुर्थोगियो का एक अहोरात्र एसे तीस अरात्र का एक महीना ऐसे बारद महीनों का एक बें ऐसे शत व का एक परान्तकाल होता है इसको गणित की रीति से यथावत ल मझ लीजिये । इतना समय मुक्ति में सुख भोगने का है । ( मन ) सब संसार अर ग्रन्थकारी का मत कि जिस पुनः जन्म मरण न कीं न आ । ( उत्तर ) यह बात कभी नहीं हो सकती क्योंकि प्रथम तो जीव का सामर्य शरीर दि पदार्थ और साधन परिसित है पुनः उसका फल अनन्त कैसे हो सकता है ? अनन्स यानन्द को भागने का सम साध्य कम आर साधन जiवा में आहूत इसiलय आनन्त सुख नहीं भोग सकते जिनके साधन अनित्य हैं उनका फल निस्य कभी नहीं हो स कता और जो मुक्ति में से कइ भी नाटकर जब इस संसार में में आठवें तो संसार का उच्छेद अर्थात् जीव निश्शशेष होजाने चाहियें । (प्रश्न ) जितने जीव मुक्त होते हैं। उसने ईश्वर नये उत्पन्न करके संसार में रख देता है इसलिये निश्शेष नहीं होते। ( उत्तर ) जो ऐसा होवे तो जब आनिस्य होजाये क्योकि जिसकी उत्पत्ति होती है उसका नाश अवश्य होता है फिर तुम्हारे मतानुसार मुक्ति पाकर भी विनष्ट हो - जायें मुक्ति अनित्य होगई और मुक्ति के स्थान में बहुत सा भीछे भड़का हो जा येगा क्योंकि वहां आगम अधिक और व्यय कुछ भी नहीं होने से बढ़त का प-

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