पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नमसमुल्लास: ॥ २५५ ) । क्या साधन है ? ( उत्तर ) कुछ साधन तो प्रथम लिख आये हैं परन्तु विशेष उपाय ये हैं जो मुक्ति चाहे बर्त जीत्रनमुक्त अर्थात् जिन मियाभाषणादि पाप काँ का फल दुःख हैं उनका छछाड सुखरूप फल का दनवाल सत्यषणाद धमचरण अवश्य कर जा कix दुःख को छुड़ाना और सुखक प्राप्त होना चाहे वह अrधर्मको छोड में अवश्य कर ! क्योंiके कु छका पापाचरण और सुख का धर्माचरण मूल कारण है 1 सपुरुषों के संग से वर्ष अथात् सत्Sमयधर्मकव्याSक- रॉय का निश्चय अवश्य करें पृथ २ जाने और शरीर अर्थात् जीव पंघ कोशों का विवेचन करें । एक ‘आन्न मय जो त्वचा से लेकर अस्थिपर्यन्त का समुदाय पथि । वीमय है, दूसरा ‘‘एमय' जल सम प्रण' अथत जो बाहर संस भतर अता अन' जो भीतर से बाहर जाता ‘समान' जो नाभिस्थ होकर सर्वत्र शरीर में रम पहुचाता ‘उदानजिससे कण्ठस्थ अन्न पान बेंचा जाता और बल पररा- क्रम होता है 'व्यrन iज स स्र सव शरीर में चष्ट अriद से जंजीव करता है तीसरा ‘मनोमय’ जिसमें मन के साथ अहंकर। , पा, पriण, पायु और उपथ पांच कर्म इन्द्रियां हैं चौथा ‘विज्ञानमय’ जिसमें बुद्धचित्त, श्रोत्र, त्वचा ने, जिह्वा और नासिका ये पांच ज्ञान इन्द्रियां जिनसे जीव ज्ञानादि व्यवहार करता है, पांचवां ‘आनन्दमयकोश' जिसमें प्रति प्रसन्नता, न्यून आनन्द अधिका- नन्द और आधार कारणदप प्रकृतेि है । ये पांच कोश कहाते हैं इन्द से जीव सब प्रकार के कर्म, उपासना और ज्ञानादि व्यवहारों को करता है। तीन अवस्था, एक ‘‘जागृत दूसरी स्विन' और तीसरी ‘सुप्ति ' अवस्था करती है ! तीन शरीर है, एक स्थूल' जो यह दीखता है । दूसरा पाच प्राण, पांच ज्ञानेन्द्रियपाच 2

। भूत और सन तथा बुद्धि इन स तरह्न तरों का समुदाय सूक्ष्मशरीर" कहता

' है यह सूक्ष्म शरीर जन्मसरण।दि में भी जीव के साथ रहता है । इसके दो भेद न हैं एक भौतिक आथात सूक्ष्मभूतों के आशों से बना है । । दूसरा स्वाभाविक जो । ( जीव के स्वाभाविक गुणरूप दें यहूं दूसरा और भौतिक शरीर मुक्ति में भी रहता है इसीसे जवि मुक्ति में सुख को भोगता । तसि कारण जिसमें सुप्त अथन गढ़नि ट्रा होती है वह प्रकृतिरूप होने से सर्वत्र विभु और सब जीवों के लिये एक है । चथा तुरीय शरीर वह कहता है।ज समें समाधि से परमात्मा के आनन्द । ये । rr। • में स्वरूप म समन - जीव होते है इस समाधि स्कारजन्य शुद्ध शरीरे का पराक्रम