पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६८

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-- - - 4 २५८ सत्यार्थक. It इनमें से अविद्या का स्वरूप कह आये पथ वर्तमान बुद्धि को आत्मा से भिन्न न सम न अस्मिता, सुख में प्रीति राग ढ ख म अप्रीति दूष और सत्र प्राणिमात्र को यह इच्छा सदा रहती है कि में सदा शरीरस्थ रहूं समझे नहीं मृत्युदु ख से त्रास आभिनिवेश कहाता है । इन पाच क्लेशों को योगाभ्यास विज्ञान से छड़ा के ब्रह्म को । प्राप्त होके मुक्ति के परमानन्द को भोगना चाहिय।( प्रश्न ) जैसी मुक्ति आप सनते हैं वैसी अन्य कोई नहीं मानता, देखो ' जैनी लोग मोक्ष rला, शिवपुर में जा के चुप चाप बैठे रहना, ईसाई चौथा आसमान जिसमें विवाह लड़ाई बाजे गाजे व खादि धारण से आनन्द भोगना, वैसे ही मु तल मान सातवें आसमान, वामम। श्रीपुर, शैव कैलाश, वैष्णव वैकुण्ठ और गोकुलिये गोसाई गोलोक आदि में जाके उत्तम ली, अन्न, पान, वन, स्थान आदि को प्राप्त होकर आनन्द में रहने को मुक्ति मानते हैं । पौराणिक लोग ( सालोक्य ) ईश्वर के लोक में निवास, ( सलूज्य ) छोटे भाई के सदृश ईश्वर के साथ रहना, सरूष्य ) जैसे उपासनीय देव की आ कृति है वैसा बन जाना, ( सामीप ) सेत्र के स ।न ईश्वर के समीप रहना, ( सयु य ) ईश्वर से सयुक्त होजाना ये चार प्रकार की मुक्ति मानते हैं । वे नित लोग जेद्दा में लय होने को मोक्ष समझते हैं।( उत्तर ) जैमी ( १२ ) बारहवेंईसाई ( १ ३ ) तेरह वें और ( १४ के चौदहवें समुल्लास में मुसलमानों की मुक्ति आदि विषय विशेष कर लिखेंगे जो वाममार्गी श्रीपुर में जाकर लक्ष्मी के सदृश बियां मद्य सासादि खाना पीना रग राग भोग करना मानते हैं बह यहां से कुछ विशेष नहीं। वैसे ही महादेव और विष्णु के सदृश आकृति वाले पार्वती और लक्ष्मी के दृश बीयुक्त होकर आनन्द भोगना यहां के धनाढय रजा से अधिक इतना ही लिखते हैं कि डा रोग में होंगे और युवावस्था सदा रहेगी यह उनकी बात मिथ्या है क्योंकि जहा भोग वहा रोग और जहां रोग वहां वस्था अवश्य होता है । अंtर पौराणिों से पूछना चाहिये कि जैसी तुम्हारी चार प्रकार की मुक्ति हे चेमी तो नूमि कीट पतन पश्वविों की भी स्वत सिद्ध है क्योंकि जितने प्राप्त ये लो 6 ६ में सत्र देवर के हैं इन्हीं में सब जीव रहते हैं इसलि ये ‘‘मा1वय ' 10 अ नाम Iन है ‘सागीर य' ईश्वर सर्वत्र व्याप्त होने में मन उनके सर गे से मय 'माइधर मुiक्त न्त्रतसिंह है ‘‘सनु' जia ईश्वर से - V sid gादा ‘रचेतन दान से बत बन्धुवन है इमस 'स। ' मुक्के में iई म५रत के iद्ध ६ आर न जीव मर्वव्यापक रसम में 1ष्य हfने से संय के !