पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नशुलfश: I २५६ - 5 . हैं इससे ‘“सायुज्य मुक्ति भी स्वतसिद्ध है । और जो अन्य साधारण नास्तिक लोग मरने से तस्वर्षों में तत्व मिलकर पर म मुक्ति मानते हैं वह तो गदहे आदि कुत्त ] को भी प्राप्त है ये सुक्तियां नहीं हैं किन्तु एक प्रकार का बन्धन है क्योकि ये लोग 1 शिवपुर, मोक्षशिला, चौथे आसमान, सातवें आसमानश्रीपुरकैलाश,वैकुण्ठ,गोलोक 1 को एक देश में स्थान विशेष मानते हैं जो वे उन स्थानों से पृथक हों तो मुक्ति छूट 1 जाय इसीलिये जैसे १२ (बारह ) पत्थर के भीतर दृष्टि बन्ध होते हैं उसके समान ए . ] बन्धन में होंगे, सुत तां यहीं कि जहां इच्छा हो वहां विचरे कीं अटके ीं। न भय, न शrन दुःख होता है जो जन्म है बहू उत्पात्ति और मरना प्रलय कहा हे समय पर जन्म लेते हैं । ( मरन ) जन्म एक वा अनेक ' ( उत्तर ) अनेक । (प्रश्न) जो आवेक हो तो पूर्व जन्म और मृत्यु की बातों का स्मरण क्यों नही ? ( उतर ) जीव अल्पज्ञ है त्रिकाल दर्शी नहीं इसलिये स्मरण नहीं रहता और जिस मन से ज्ञान करता है वह भी एक समय में दो ज्ञान नहीं कर सकता भला पूर्व जन्म की बात तो दूर रहने दीजिये इसी देह में जब गर्भ में जीब था शरीर बना पश्चात् जन्मा पांचवें वर्ष से पूर्व तक जो २ बातें हुई हैं उनका स्मरण क्यों नहीं कर सकता ? और जागृत बा स्वप्न में बहुत सा व्यवहार प्रत्यक्ष में करके जब सुपुप्ति अन् गईढ़ निद्रा होती है तब जागृत आदि व्यवहार का स्मरण क्यों नहीं कर सकता ? और तुमसे कोई पूछे कि बारह वर्ष के पूर्वी तेरहवें वर्ष के पांचवें महीने के नबंब दिन दश बजे पर पहिली मिनट में तुमने क्या किया था ' तुम्ारा मुखहाथ, कान, नेत्र, शरीर किस ओर किस प्रकार का था ? और मन में क्या विचार था ? जब इसी शरीर में बातों स्मरण में शद्द करनी केवल ऐसा है तो पूर्व जन्म की के दूर लड़कपन की बात है और जो स्मरण नहीं होता है इसी से जीब मुखी है नहीं तो सब जन्मों के दु खा को देख २ दुखित होकर सर जाता | जजो काइ व ऑ।र पढे जन्म के वर्द्धमान को जानना चाहै तो भी नही जान सकता क्यों जीव का नाम और स्वरूप अल्प है यह बात ईश्वर के जानने योग्य है जीब के नहीं ।( प्रश्न ) जव जीव को पूर्व का ज्ञान नहीं और ईश्वर इसको दंड देता है तो जीव का गुबार नी हो सकता क्योंकि उसको ज्ञान हो कि अमुक काम किया उसी का जब हमने था ा यह फल है तभी वह पाप कर्मों से बच सके ? ( उत्तर ) तुम ज्ञान के भार मानते ?(प्रश् ) प्रत्यक्षदि प्रमणों से आठ प्रकार का । ( उत्तर हो ) तो वे तु जन्म से लेकर समय २ में रज, बुद्धि विद्या, दारिद्र, , सूता मर्टि • . है।