पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२७२

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पर्थ में भी पानी के १६२ प्रसन्नता म lद्ध होगी वैसा करेगा तो पापकमें भय न होकर सुखार से पापक और धर्म का क्षय हो जायगा इसलिये पूर्व जन्म के पुण्य पाप के अनुसार वर्त्तमन जन्म और वर्तमान तथा पूर्वजन्म के कर्मानुसार भविष्य जन्म होते हैं। ( प्रश्न) मनुष्य और अन्य पश्वादि के शरीर में जीव एलसा है या भिन्न २ जाति के 3 (उत्तर ) जीव एकसे हैं परन्तु पाप पुण्य के योग से मलिन और पवित्र होते हैं ।( प्रश्न ) मनुष्य का जीव पश्वादि में और पश्वदि का मनुष्य के शरीर मे और बी का पुरुष के और पुरुष का वी के शरीर से जाता आता है बा नहीं ? ( उत्तर ) झा, जाता ५ ८ t आता है क्योंकि जब पाप बढजत पुष्य न्यून हांता है तब मनुष्य का जांच प वादि नीच शरीर और जब धर्म अधिक तथा अधर्म न्यून होता है तब देव अर्थात विद्वानों का शरीर मिलता हर जब पुण्य पोप बराबर होता है तब साधारण म ज्यजन्म होता है इसमें भी पुण्य पाप के उत्तम मध्य और निकृष्ट होने से म यT में भी उत्तम मध्यम निकृष्ट शरीरदि सामग्रीवाले होते हैं और जब आधिक पाप का फल पश्वादि शरीर में भोग लिया है पुन. पाप पुण्य के तुल्य रहने से मनुष्य शरीर में आता और पुण्य के फल भोगकर फिर भी मध्यस्थ मनुष्य के शरीर में अमता है जब शरीर से निकलता है उसी का नाम ‘मृत्यु और शरीर के साथ संयोग होने का नाम ‘जन्म' है जब शरीर छोडता तब यमालय अर्थात् आकाशस्थ वायु में रहता क्योकि “यमेन बायुना। वेद में लिखा है कि यम नाम बायुका है गरुड़पुराण का कल्पित यम नहीं । इसका विशेष खण्डन मण्डन ग्यारंइवे समुला- स में लिखेगे । पश्वात् धर्मराज अर्थात् परमेश्वर उस जीव के पाप पुण्यानुसार जन्म देता है वह वायु, अन्न, जल अथवा शरीर के छिद्रह्मा दूसरे के शरीर में ईश्वर की प्रेरणा से प्रविष्ट होता है जो प्रविष्ट होकर क्रमश: वीणों से जा, गर्भ में स्थित हो, शरीर धारण कर, हर आता है जो स्त्री के शरीर धारण करने योग्य कर्म हो तो ली और पुरुष के शरीर धारण करने योग्य कमें हो तो पुरुप के शरीर में प्रवेश करता है | और नसक गर्भ की स्थिति समय की पुरुष के शरीर मे सम्बन्ध करके रजवीर्य के बराबर होने स होता । है। इसी प्रकार नाना प्रकार के जन्म मरण में तबतक जीव पडा रता है कि जबतक उत्तम कपासना ज्ञान को कर मुक्ति को नहीं पाता। क्योंकि उत्तम कदि करने से मनुष्यों में उत्तम जन्म और मुक्कि में महाकरंपर्यन्त जन्म मरण दु खों से रहित होकर आनन्द में रहता है 1 (प्रश्न) मुक्ति एक जन्म में नी बवा अनेक जन्में में ' ( उतर ) आम जन्मो मे क्ये कि