पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२७६

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- ब - तार काट लिया गया। २६६ इत्याश11 रत है उसको दृक्षादि स्थवर का जन्म, वाणी से किये पाप कर्मों से पक्षी और 1 गIद कम !! तथा मनसे किये लूट से चांडाल आदि का शरीर मिलता है ॥ २ ॥ | मैं जो गुण इन जीवों के देख़ में 30 धिकता से वत्तेता है वह गुण उस जीव को अपने सश कर देता दे । ३ ll जत्र आत्मा में ज्ञान हो तव सल्व, जब आज्ञान रहूं तब | तम और जब रग में अस्मा लग तब रजोगुण जानना चाहिये, य वन प्रकृति क गुण सब ससरस्थ पदार्थों में व्याप्त होकर रहते हैं : ४ 11 ज त का विवेक इस प्रकार करना चाहिये कि जब आत्मा में प्रसन्नता मन प्रसन्न प्रशान्त के सदृश - द्ध भानयुक्त बसें तब समझना कि सत्वगुण प्रधान और रजोगुण तथा तमोगुण अ- प्रधान हैं ॥ ५!l जब आम और मन दु ख तयुक्क प्रसन्नतारहित विषय में इधर उधर गमन आगमन में लगे तब समझना कि रजोगुण प्रधान सत्वगुण और तमोगुण आप बान दे II ६ 1 जत्र मोह अरात सांक्षारिक पदार्थों में फंसा हुआ आदमा ओर | मन हो, जब आत्मा और मन में कुछ विवे फ न रहे विषयों में आक्क त वितरहित जानने के योग्य न हो तब निश्वय समझना चाहिये कि इस समय मुझ में तमोगुण प्रधान और सरस्वगुण तथा रजोगुण आप्रधान ने ५७। अब जो इन तीनों गुणों का उतम मध्यम और निकृष्ट फलोदय होता है उस को पूर्णभाव से कहते हैं 17 ८ ॥ जो वेदों का अब म्याम, धमनुष्ठान, ज्ञान की वृद्रि, वित्रता की इच्छा, इन्द्रियों का निग्रह, धमें क्रिया और आत्मा का चिन्तन होता है यह सत्वगुण का लक्षण है 4 ॥ & I॥ जब ! रजोगुण का उदय सल्व और तमोगुण का अन्तभव होता है तव आरम्भ में रुचिता थैय्येंदबाग असत् कर्म का प्रण निरन्तर विषयों की सेवा में प्रीति होती है तभी समझना कि रजोगुण प्रधानता से मुझ में वर्ल रह है 1 १ ० ॥ जव तमोगुण का उदय ऑोंर दनों का अन्तभव होता है तब अत्यन्त लोभ अत् ख व पार्टी का मूल बढ़ता, अत्यन्त आलस्य और निद्रा, धैर्य का ना, क्रूरता का होना, ना ! ' iतय अर्थात् वेद और ईश्वर में श्रद्वा का न रहना, भिन्न २ अन्तकरण की वृत्ति और एकाग्रता का अभाव और किन्हीं व्यसों में फंसना होवे तब तमोगुण का ॥ लक्षण विद्वान् को जानने योग्य हे ॥ ११ ॥ तथा जब अपना आत्मा जिस कम का कर करता हुआ और करने की इच्छा से लज्जा, झा का और भय को प्राप्त होवे तब जानt कि मु में प्रभुद्र तमोगुण है 1 १२ ॥ जिस कर्म से इस लोक में से जीवात्मा कल प्रसिद्धि चाहतr, दरिद्रव होने में भी चारण भाट आदि के