पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२७७

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नमसमुस 1 २ ६ ! r दान देना नहीं छोड़ता तब समझ नr iके मु में रजोगुण प्रबल है ॥ १३ ॥ और जब मनुष्य का आदमा सब से जनन का ठ गुण ग्रहण करता जाय अच्छे काम में लज्जा न करे और जिस कर्म से आत्मा प्रसन्न होवे अर्थात् धर्माचरण ही में रुचि रहे तब समझना कि मुझ मे सत्वगुण प्रबल है II १४ ॥ तमोगुण का लक्षण काम, रजोगुण का अर्थ समूह की इन्छ छोर सत्वगुण का लक्षण धर्म की सेवा करना है परन्तु तमोगुण से रजोगुण और रजोगुण सगुण श्रेष्ठ है।१५। अब जिस २ गुण से जिस २ गति को जीव प्राप्त होता है उस २ को आगे लिखते है: देवं सांस्बका याiन्त मनुष्यत्वच राजसा: । से क्व तामस नित्यांनद iवधा गांः ॥ १ ॥ स्थावराकृमिकीटाश्व मत्स्याः सपश्ध कच्छपा: । पश्श्व मुगाश्व जघन्या तामों गातः । २ ॥ हस्तिनश्व तुरड़ाश्ध शूद्रा म्लेच्छाश्व गहिंताः। सेहा अयात्रा बराहाश्व मध्यमा तामसी गतिः ॥ ३ ॥ चारणश्व स्पणव पुरुषषा दiPभका। रक्षांति व पिशाचाश्च तानसौफ्त्तमा गतिः ॥ ४ .!॥ झल्ला मल्ला नटाश्चेव पुरुषाः शनवृत्तय: । तृतपानमसक्ताश्व जघन्या राजसी गतिः ॥ ५ ॥ राजानः क्षत्रियाश्व रज्ञां चेव पुरोहिता: । वाददयुद्धप्रधानाश्व मध्यमा राजसी गति: ॥ ६ ॥ गन्धवा गुट्टका 'क्षा विबुधाचराश्व ये । तथूवासरसः सवों राजसत्तमा गति •। ७ ॥ तापसा यतयो वित्र ये व वैमनिका गणः । नक्षत्राणि च दैयश्व प्रथम सात्विकी गतिः ॥ ८ ॥ यज्वान नषय दवा वदा ज्ाताप वर। पितरश्व साध्याश्व द्वितीया सात्विकी गति: ॥ है ।