पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२८

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परमेश्वर का नाम “माता” है । (चर गतिभक्षणयोः) आड्पूर्वक इम धातु से “आचार्य्य” शब्द सिद्ध होता है “य आचारं ग्राहयति सर्वा विद्या वा बोधयति स आचार्य ईश्वरः” जो सत्य आचार का ग्रहण करानेहारा और सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है इससे परमेश्वर का नाम “आचार्य” है । (गॄ शब्दे ) इस धातु से “गुरु” शब्द बना है “यो धर्म्यान् शब्दान् गृणात्युपदिशति स गुरुः” ॥


स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् ॥ योग सू०।। समाधिपादे सू० २६ ॥


जो सत्यधर्मप्रतिपादक सकल विद्यायुक्त वेदों का उपदेश करता, सृष्टि की अदि में अग्नि, वायु, अदित्य, अङ्गिरा और ब्रह्मादि गुरुओं का भी गुरु और जिसका नाश कभी नहीं होता इसलिये उस परमेश्वर का नाम “गुरु” है । (अज गतिक्षेपणयोः, जनी प्रादुर्भावे) इन धातुओ से “अज” शब्द बनता है “योऽजति सृष्टिं प्रति सर्वान् प्रकृत्यादीन् पदार्थान् प्रक्षिपति जानाति जनयति च कदाचिन्न जायते सोऽजः” जो सब प्रकृति के अवयव आकाशादि भूत परमाणुओं को यथायोग्य मिलाता शरीर के साथ जीवों का सम्बन्ध करके जन्म देता और स्वयं कभी जन्म नहीं लेता इससे उस ईश्वर का नाम “अज” है । (बृहि वृद्धौ) इस धातु से सिद्ध होता है “योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा” जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढाता है इसलिये परमेश्वर का नाम “ब्रह्मा” है । “सत्यं ज्ञानमनन्त ब्रह्म” यह तैत्तिरीयोपनिषद् का वचन है “सन्तीति सन्तस्तेषु सत्सु साधु तत्सत्यम् । यज्जानाति चराऽचरं जगत्तज्ज्ञानम् । न विद्यतेऽन्तोऽवधिमर्यादा यस्य तदनन्तम् । सर्वेभ्यो बृहत्त्वाद् ब्रह्म” जो पदार्थ हों उनको सत् कहते हैं उनमें साधु होने से परमेश्वर का नाम सत्य है । जो चराचर जगत् का जाननेवाला है इससे परमेश्वर का नाम “ज्ञान” है । जिसका अन्त अवधि मर्यादा अर्थात् इतना लम्बा, चौड़ा, छोटा, बड़ा है ऐसा परिमाण नहीं है इसलिये परमेश्वर का नाम “अनन्त” है।(डुदाञ् दाने) आङ्पूर्वक इस धातु से “आदि” शब्द और नञ्पूर्वक “अनादि” शब्द सिद्ध होता है “यस्मात् पूर्वं नास्ति परं चास्ति स अदिरित्युच्यते, न विद्यते आदिः कारणं यस्य सोऽनादिरीश्वरः” जिसके पूर्व कुछ नहीं और परे हो उसको आदि कहते हैं, जिसका आदिकारण कोई भी नहीं है इसलिये परमेश्वर