पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२८०

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अथाऽऽचारनाचारभध्याsमक्ष्यविषयान् । व्याख्यास्यामः ? अब जो धर्भयुक्क काम का आचरण, सुशtतता, सत्पुरुषों का संग और सद्विचा क प्रहण में रुचि आ।दि आचार और इनसे विपरीत अनाचार करता है उनको ; लिखत हैं: विद्वांद्रसातः सांद्रोनियम पराहगामेः । हृदयनाभ्यनुज्ञाती या वनस्तानवत : १ ! कामास्मता न शस्ता न चैवहास्यकामता । १ कtस्य हेि दावधग: कसयांगश्व चैदेिक: ॥ २ ॥ सद्भल्पमूलः काम यज्ञा: सxल्पसभा। नताने यमधर्मश्च सवं सद्भल्पज स्मृता : ॥ ३ ॥ - - अकामस्य क्रिया काद् दृश्यत नेह कांचित् । यद्यद्धि कुरुते किड़िचत् तत्तत्कामस्य चेष्टितम् ॥ ४ हैं ! बदांsiखल धर्ममूल स्मृतिीले व तहिदाम् । याचारोचैव साधूनामात्मनस्तुष्टिरेव च ॥ ५ ॥ सवन्तु समवेक्ष्येद्द निखिल ज्ञानचा । श्रुतिप्रामयतो विज्ञान स्त्रयों निविषत वे ॥ ६ ॥ | तिथि पर या न कर सका था।