पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२८५

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दशमसमुल्लास: ?। ९७५ - ! है वह बालक और जो विद्या विज्ञान का दाता है उस बालक को भी शुद्ध मानना चाहिये क्योंकि सब शान आप्त विद्वान् अज्ञान को बाल क र ज्ञानी को पिता कहत है ॥ ९ से ॥ अधिक वर्षों के बीतने, वेत बल के होने, अधिक धन से और बड़े कु- टुम्ब के होने से वृद्ध नहीं होता किन्तु ऋषि महामारों का यही निश्चय है कि जो हमारे बीच में विद्या विज्ञान में आधिक है वही वृद्ध पुरुष कता है ।\१ 11 नवण ज्ञान से, क्षत्रिय बल से, वैश्य धनधान्य से और शूढ़ जन्म अर्थात् अधिक आयु से वृद्ध होता है।॥११!शिर के बाल श्वेत होने से बुड्ढा नहीं होता किन्तु जो युवा विद्या पढ़ा हुआ है उसी को विद्वार लोग बडा जानते हैं। १२ । और जो चिचा नहीं पढ़ वह जैसा काष्ठ का हाथ है तथा चमड़े का मृग होता है वंस अविद्वान् मनुष्य जग में नाममात्र मनुष्य कहता है । १३ ॥ इसलिये विद्या पढ़ विद्वान् व मत्मा होकर निर्वीरता से सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करे और उपदेश में वाणी मधुर और कोमल बोले जो सत्योपदेश के धर्म की शुद्धि और अधर्म का नाश करते है वे पुरुष धन्य है 1 १४ ॥ नित्य स्नान, वन, अन्न, पास स्थान सत्र शुद्ध रखे क्योंकि इन के शुद्ध होने से चित्त की शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होकर पुरुषार्थ वहता है। शव उतना करमा योग्य है कि जिस न ख म दुर्गन्ध दूर जाय । आचारः प्रथमा धः मुत्युक्क' स्मार्च एव व ॥ मनु० अ० १ । १०८ ! . जो सत्यभाषणदि कर्मों का आचरण करना है वही बंद र स्मृति में कहा आत अचार ६ ! मा न नॉ वधीः पितरं मत मातरम् ॥ यजु० अ० १६ । म० १५ ॥ आचा ब्रह्माचoण ब्रह्मचारिणमिच्छते ॥ अथवे० कॉ० -११ : व १५ । मै० १७ ॥ मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्य देवो भव । आतिथिदेवो भव ॥ तैत्तिरीयारण्यके 1 अ० ७ । अनु० ११ ॥ r है -