पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२८६

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९७ संस्थथिकश. H 25 को F है माता, पिता, अचाये और अतिथि की सेवा करना देवपूजा करती है और जिस २ कर्म से जगन् का उपकार हो वहूं २ कर्म करना और हानिकारक छोड़ | देना ही मनुष्य का मुख्य कर्तव्यकम है कभी नास्तिक, लम्पट, विश्वासघाती, ! मिथ्यावादी, स्वार्थी, कपटी, छली आदि दृष्ट्र मनुष्यों का स त न करे आप्त जो ! सत्यवदी धरमा परोपकारप्रिय जन हैं उनका सदा सफ़ करने हीं का नाम श्रेष्ठr- चार है । ( प्रश्न ) आर्यावर्त देशवासियों का आयवर्दी देश से भिन्न २ देशों में ! जाने से आचार नट हो जाता है बा नहीं ? ( उत्तर ) यश बाठ मिथ्या है क्योंकि 1 जो बाहर भीतर की पवित्रता करनी सत्यभाषणादि आचरण करना है वह जहां e ! का करगf अचार आर वर्मष्ट कभी न हांग र ज अय्यबत्त में रहकर ! दुष्टाचार करेगा वही धर्म और अचारभ्रष्ट कहनेगा जी ऐसा ही होता तो 9 मेरोहैरव के वर्ष वर्ष हैमबर्त तत: । माँव व्यतिक्रम्य भारत वयंसदत t स देशान् विविधान् पश्चीनणनिर्धावितान् ॥ है महाभारत शान्ति० मोक्षध० 1 अ० ३२७ ॥ - ये श्लोक भारत शान्तिपर्व मोक्षधर्म में व्यास शुक्रसंवाद में हैअप एक समय व्यासजी अपने पुत्र शुक और शिष्य सहित पाताल अथत जिस को इस समय ‘अमेरिका' कहते है उसमें निवास करते थे शुकाचार्य ने पिता से एक प्रश्न पूछा कि आत्मविद्या इतनी ही है या अधिक १ ठप्रासजी ने जानकार उस बात का प्रत्युत्तर न दिया थाiके उस च, त का उपदेश कर चुके थे, दू सर की सफाई के लिय अपन पुत्र भु से कहा कि वे पुत्र ' तू मिथिलापुरी में जाकर यही प्र प्रप्रभ जनक रजा से 1 कर बह इसका यथायोग्य उत्तर देगा में पिता का बचन सुनकर शुकचर्चा पाताल म मिथिलापुरी की ओर चले प्रथम से अर्थात् ६ि मालय से ईशान उत्तर और ! बायव्य कोण में जो देश बसते हैं उनका नाम हरवर्ष था अर्थात् इरि कहते है वन्दर ती स ा क य भ मनुष्य अ रक्कमुख अथॉन वानर के समान भू र नत्राल ६ iन दा यूप का नाम इस समय ‘‘' है उन्हीं को संस्कृत में ‘रिवर्सकहते थे न देशों को देखते हुए और जिनो हण ‘ यह " औीक कहते हैं उन देश को k.