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२८० सत्याप्रकाश: ।

यह मतलबसिन्धु क्या नहीं रचा है अच्छा जो अदृष्ट म दांष नहीं तो भगी बा ।
मुसलमान अपने हाथ से दूसरे स्थान में बना कर सुम को आ देखे तो खालोगे

वां नही ' जो कहो कि नहीं तो अदृष्ट में भी दोष है । हां, मुसत मान ईसाई आदि सव मांसाहारियों के हाथ के खाने आर्मी को भी मद्यादि खाना पीना अपराध पीछे लग पड़ता हैपरन्तु आपस में आय का एक भोजन होने में कोई भी दोष नहीं दीखता जबतक Tक मत एक हानि लाभ, एक सुख दु ख परस्पर न मानें तबतक उन्नति होना बहुत कठिन है। परन्तु केवल खाना पीना ही एक होने से सुधार नहीं हो सकता किन्तु जब तक बुरी बातें नहीं छोड़ते और अच्छी बात नहीं करते तबतक 3 बढती के बदले हानि होती हैं । विदेशियों के आवर्स में राज्य होने का कारण . आपस का , मत , ब्रह्मचर्य का सेवन न करना, विद्या न पढ़ना पढ़ा वा बाल्यावस्था में अस्वयवर विवाहू, विषयासक्ति, मिथ्योभापणादि कुलक्षणवेदविद्या का आश्रचार आदि कुकर्म हैं जब आपस मे भाई २ लड़ते . तभी तfसरा विदेशी आकर पच वन बैठता है 1 क्या तुम लाग महाभारत कf बातें जो पांच सहन वर्ष के पहिले हुई थीं उनको भी भूलगये ' देखो ! महाभारत युद्ध में सब लोग लडाई में सवारियों पर खाते पीते थे आपस की फूट से कोरव पड र यादों का सपना हiगया सो तां हांगया परन्तु अबतक भ वही रांग पांछ लगा है न जान यह आयकर राक्षस कभी छूटेगा वा आर्थों को सब मुखों से छुड़ाकर दु ख सागर में ा मागा ? डमी दुष्ट दुर्योधन गोत्रहव्यारे, स्वदेविनाशक, नीच के टुटमार्ग में माय लाग अब तक भी चल कर द.ख बढ़ा रहे हैं पर मश्वर कृपा कर के यद रा of cग ई में से हजाय। भयभक्ष्य दो प्रकार का होता है एक धमंशोक्त दू मt कक्षाकि, जज से धे में श।न में। -- अभल्याण द्विजातीनाममध्यभवाणि च ॥ मनु० ५ । ५ ॥ iर शर्थात् चानण क्षत्रिय और वैश्य को मलीन विष्ट त्रादि के सस स से लए न हुए व शा फस मूलftद न खाना । वर्जयेन्मभूमां च ॥ मनु० २। १७७ ॥ में आम के म कार के मद, , मंगा, अफीम छItद । वृद्घि लुभूति य द्वयं मदकारी तदुष्यते ॥ शाहूं- ‘अर 2 ५ 1 [० २९ !!