पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२९३

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भBने भी मप्र: है। १८१ उधर ज।य ( मन ) ‘‘गुरॉच्छिष्टभोजन इस वाक्य का क्या अर्थ होगा ? ( उत्तर ) इस का यश अर्थ है कि गुरु के भोजन कियेपश्वात् जो एथ अन शुद्ध स्थिर ६ उसका भोजन करना अथात् गुरु का प्रथम भाजन करके पश्वात शिष्य को भोजन करना चाहिये ।( मरन ) जो उच्छिष्ट मात्र का निषेध है तो मक्खियों का

। उच्छष्ट सहत, बछ डे का उच्छिष्ट दूध आर एक प्रास खाने के पश्चात् अपना भी उच्छिष्ट होता है पुनउनको भी न खाना चाहिये । ( उत्तर ) सहृत कथनमात्र ही उ।च्छष्ट होता है परन्तु वंद बहुतसीं औषधयों का सार ग्राह्य बछड़ा अपर्द्धी माह के बाहिर का दूध पतिा है भी तर के दूध को नही पी सकता इसलिये उच्छिष्ट नही परन्तु बछड़े के पिये पश्वात् जल से उसकी मा के स्तन धोकर शुद्ध पात्र में दोइना चाहिये । और अपना उच्छिष्ट अपने को विकारकारक नहीं होता देखो 4 स्वभाव से यह बात सिद्ध है कि किसी का उच्छिष्ट कोई भी न खाने जैसे अपने मुख, नाक, कान, आाबउपस्थ और गुन्द्रियों के सलमूत्रादि के स्पर्श में घृणा नहीं होती वैसे किसी दूसरे के मल मूत्र के स्पर्श में होती है । इससे यह सिद्ध होता है कि यह व्यवहार सांटेक्रम से विपरीत नहीं है इसलिये मनुष्य मात्र का. उथित है कि किसी का उचिछष्ठ अर्थात् जूठा न खायI ( प्रश्न ) भला स्त्री पुरुष भी परस्पर उच्छिष्ट न खायें ? ( उत्तर ) नहीं क्योंकि उनके भी शरदरों का स्वभाव - ९ भिन्न २ है ' ( टन ) को मनुय मात्र के दूथ की कोहुई रiई के खान में क्या दोष है ? क्योंकि ब्राह्माण से लेके चांडाल पर्यन्त के शरीर हड़ मांस चमड़े - के के हैं और जैसा रुधिर ब्राह्मण क शरर म है वे सा ही चाहल अtiदें के, पुन. मनुष्यमान के हाथ की पकी हुई रसोई के खाने में क्या दोष है १ ( उत्तर ) दोष है क्योंकि जिन उत्तम पदार्थों के खाने पीने से ब्राह्मण और त्रा।णी के शरीर में दुर्गन्धादि दोष रहित रज वधे उत्पन्न होता है वैसा चांडाल आरक चांडालो क शरीर में नहीं, क्योंकि चांडाल का शरीर दुर्गन्ध के परमाणुओं से भरा हुआ होता है वैसा ब्राह्मणादि वर्षों का नहीं इसलिये त्राह्माणादि उत्तम वर्क के हाथ का खाना | और चांडालादि नीच भंगी चमार आदि का न खाना । अला जब कोई दुम स 0 . में = पूछा कि जैसा चमड़े का शरीर माता,, ससबांदन, न्या, पुत्रवध का हं वा ही अपनी बी का भी है तो क्या सात आदि नियों के साथ भी स्वली के समान वोंगे ? तब तुम को संकुचित होकर चुप ही रहना पड़ेगा जैसे उत्तम न्न हाथ ओर मुख से खाय जात वैसे दुगन्ध भt खाया जासकता तो क्या सलाह भ