पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२९५

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उन्हीं ने मद्यपान गोमांसादि का खाना पीना स्वीकार किया उस समय से भोज- नादि मे बखेड़ा होगया । देखो ' काबुलकृधार, ईरा, अमेरिका, यूरोप आदि देशों के राजाओो की कन्या गान्धारी, माद्री, उलोपी आदि कसाथ आय्यवर्स देशीय राजा लोग विवाह आदि व्यवहार करते थे शकुनि आादि कोरब पांडवों के साथ खाते पीते थे कुछ विरोध नहीं करते थे क्योंकि उस समय सर्व भूगोल में वेदोक एक मत था उसी में सब की निष्ठा थी और एक दूसरे का सुख दु ख हानि लाभ आपस मे अपने समान समझते थे तभी भूगोल म सुख था अब तो बहुतसे मतवाले होने से बहुत सा दु ख और विरोध बढ़ गया है इसका निवारण करना 'बद्धिमानों का काम है । परमात्मा सब के मन में सत्य मत का ऐसा अंकुर डाले कि जिससे मिथ्या मत शशि ही प्रलय को प्राप्त हो इसमें सब विद्वान् लोग विचार कर विभाष छाड के धनन्द कf बावं ।। यह थोडासा आचार अनाचार भयाभक्ष्म विषय में लिखाइस ग्रन्थ का

पूर्वाद्ध इस दुशबे समुल्लास के साथ रा गया ' । इन समुल्लास में विशेष ख- उडन म७डन इसलिये नही लिखा iके जबतक मनुष्य सत्यसत्य के विचार में कुछ भी सामथ्र्य म बढ़ाते तबतक स्थूल और सूक्ष्म खण्डनों के अभिप्राय को नही स मम झ सकते इसलिये प्रथम सब को सस्य शिक्षा का उपदेश कर अब उत्तरराई अर्थात् जिसमें चार समुल्लास हैं उस में विशेष खण्डन मण्डन लिखेगे, इन चार से से प्रथम समुल्लास में आास्थ्यवर्गीय मतमतान्तर, दूसरे में जैनियो के, तीसरे में ? ईसाइयो और चौथे से मुसलमानों के मत मतान्तरो के खण्डन स७डन के विषय में प्र लिखेगे और पश्चात् चौदहवे समुल्लास के अन्त में स्व स त भी खिलाया जायगा जो कोई विशेष खण्डन सडन देख ना चाहें वे इन चारों से समल्लास में देखें परन्तु सामान्य कर f २ दश समुस्लासों में मेरी कुछ थोड़, खण्डन मuडन किया है इन चद३ समुल्लासों को पक्षपात छोड़ न्यायष्टि से जो देखेगा उसके ग्राम में सस्य थे f प्रकाश होकर आनन्द हो ' और ज जा हट रमईऔर श्य या से