पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२९८

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२८८ अभूमि का !

हैं, उनका सक्षेप से गुण दोष इस ११ वें समुठास में दिखाया जाता है इस मेरे कर्म से यदि उपकार न सा तो विरोध भी न करें क्योंकि मेरा सास्पर्य किसी की हानि बा विरोध करने में नहीं किन्तु सत्यासत्य का निर्णय करने करने का है। इसी प्रकार सच गड़यों को न्यायदृष्टि से वतना अति उचित है मनुष्यजन्म का होना सत्यालय के निर्णय करने करने के लिये है न कि वादविवाद विरोध करने करने के लियेइसी सतमतान्तर के विवाद से जगत् में जो २ अनिष्ट फल हुए होते हैं और होंगे उनको पक्षपात रहित विद्वजन जान सकते हैं जबतक इच मनुय जाति में परस्पर मेयर मत्तमतान्तर का विरुद्ध वाद न छगा तबतक अन्योन्य को आनन्द न होगा यदि हम सब मनुष्य और विशेष विद्वजन ईष्य कैंप छोड़ सत्यास का निर्णय करके सत्य का प्रहण और असत्य का त्याग करना करना चाहें तो हमारे लिये यह बात असाध्य नहीं है । यह निश्चय है कि इन विद्वानों के विरोध ही ने सब को विरोध जाल में फंसा रक्खा है यदि ये लोग अपने प्रयोजन में न फंसकर सर्वे के प्रयोजन को सिद्ध करना चाहें तो अभी ऐक्षमत जायें इसके होने की युक् िइस प्रन्थ की पूर्ति में लिखेंगे सर्वशक्तिमार परमात्मा एक मत में प्रवृत्त होने का उत्साह सब मनुष्यों के आत्मों में प्रकाशित करे ।

अलमतिवितरण विपश्चिरशिरोमणिख है॥