पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

आगे “ईश” वा “पति” शब्द रखने से “गणेश” और “गणपति” शब्द सिद्ध होते हैं “ये प्रकृत्यादयो जडा जीवाश्च गण्यन्ते संख्यायन्ते तेषामीशः स्वामी पतिः पालको वा” जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालनहारा है इससे उस ईश्वर का नाम “गणेश” वा “गणपति” है। “यो विश्वमीष्टे स विश्वेश्वरः” जो संसार को अधिष्ठाता है इससे उस परमेश्वर का नाम “विश्वेश्वर” है। “यः कूटेऽनेकविधव्यवहारे स्वस्वरूपेणैव तिष्ठति स कूटस्थः परमेश्वरः” जो सब व्यवहारों में व्याप्त और सब व्यवहारो का आधार हो के भी किसी व्यवहार में अपने स्वरूप को नहीं बदलता इससे परमेश्वर का नाम “कूटस्थ” है। जितने देव शब्द के अर्थ लिखे हैं उतने ही “देवी” शब्द के भी है । परमेश्वर के तीनों लिङ्गों में नाम हैं, जैसे- ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति जब ईश्वर का विशेषण होगा तब “देव” जब चिति को होगा तब “देवी” इससे ईश्वर का नाम “देवी” है । (शक्लृ शक्तौ) इस धातु से “शक्ति” शब्द बनता है “यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः” जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है इसलिये उसे परमेश्वर का नाम “शक्ति” है। (श्रिञ् सेवायाम्) इस धातु से “श्री” शब्द सिद्ध होता है “यः श्रीयते सेव्यते सर्वेण जगता विद्वद्भिर्योगिभिश्च स श्रीरीश्वरः” जिसका सेवन सब जगत् विद्वान् और योगीजन करते हैं इससे उस परमात्मा का नाम “श्री” है । (लक्ष दर्शनाङ्कनयोः) इस धातु से “लक्ष्मी” शब्द सिद्ध होता है “यो लक्षयति पश्यत्यङ्कते चिह्नयति चराचरं जगदथवा वेदैराप्तैर्योगिभिश्च यो लक्ष्यते स लक्ष्मीः सर्वप्रियेश्वरः” जो सब चराचर जगत् को देखता चिह्नित अर्थात् दृश्य बनाता जैसे शरीर के नेत्र, नासिका और वृक्ष के पत्र, पुष्प, फल, मूले, पृथिवी, जल के कृष्ण, रक्त, श्वेत, मृत्तिका, पाषाण, चन्द्र, सूर्यादि चिह्न बनाता तथा सब को देखता सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादि शास्त्र वा धार्मिक विद्वान् योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम “लक्ष्मी” है । (सृ गतौ) इस धातु से “सरस” उससे मतुप् और डीप् प्रत्यय होने से “सरस्वती” शब्द सिद्ध होता है “सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती” जिसको विविध विज्ञान अर्थात् शब्द अर्थ सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे इससे उस परमेश्वर का नाम “सरस्वती” है। “सर्वाः शक्तयो विद्यन्ते यास्मिन् स सर्वशक्तिमानीश्वरः” जो अपने कार्य करने में किसी अन्य की सहायता की इच्छा नहीं करता अपने ही सामर्थ्य से अपने सब काम पूरे करता है इसलिये उस परमात्मा का नाम