पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ सत्याका: । यदि आप प्रति विद्वानों से भूगोल के मनुष्य , क्षत्रिय, वैश्य, , दस्यु, म्लेच्छ आादि सब आ पने २ योग्य चिया चरित्रों की शिक्षा और विद्यभभ्यास करने और महाराजा युधिष्ठिरजी के राजसूय यज्ञ और महाभारत युपर्यन्त यह्य के राज्याधन सव राज्य थे । सुनो' चीन का भगतअमेरिका का वाहनयूरोपदेश का विडालाक्ष अर्थात् माजर के सहश अखवाले, पवन जिंको यूनान क आये और ईरान का शल्य आदि सष राजा जस्सूय यज्ञ आiर भारत युद्ध में अज्ञानुसार अप थे। जब रघुगण राजा थे तब रवण भी यहां के अधीन था जब रमचन्द्र के समय में वेद गया तो दस को राम चन्द्र ने दuड देकर राज्य से कट कर उसक भx iवेष का राज्य दिया था 1 एवयं राजा से ले कर पाण्डवोंन्त अग्रयां का चक्रवर्ती राज्य रहा तत्पश्चात् परस्पर के विरोध से लड़कर नष्ट होगये क्योंकि इस पर Eम ने स्पष्ट में अभिमनी, अन्यथक, अवद्वान लग क-र।ज्य बहुत दिन नहीं चलता और यह से सार की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि जब बहुतसा धन

। असंख्य प्रयोजन से अथक होता है तव आलस्य, पुरुषार्थांतत, यो, प, विषयासक्ति और प्रमाद बढता है इससे देश में सुशिक्षा नष्ट कर दुगुण और दुष्ट व्यसम बढ जाते हैं जैसे कि मद्य मांस सेवन, वाल्यावस्था में विवाह और स्वेच्छ(चारदि दोष बढ जाते हें और जब युद्धविभाग में युद्धविद्याकौशल और सेना इतनी बढ़े कि जिसका सामना करने वाला भूगोल में दूसरा न हो तब उन लोगों को पक्षपात अभिमान बढकर अन्याय बढ़ जाता है जब ये दोष हो जात हैं तब परस्पर में विरोध होकर अथवा उन से अधिक दूसरे छोटे कुलों में से कोई एसा सस पुरुष खडा हांता है कि उसका पराजय करने में समर्थ हाव जस मुसलमानों की बादशाही के सामने शिवाजी गोविन्दसिंहजी ने खड़े होकर मुस लमानों के राज्य को छिन्नभिन्न कर दिया । अथ केमेरोवो परेsये महाधनुर्धरश्चक्रवर्तनः केाचत् सु द्युम्नभूरिघुन्नेन्द्रगुनकुलयश्वयौवनाश्ववश्वश्वपतिशशवि- लुहारश्वन्द्राSम्बरीषननक्सयतिययात्यनर ण्याक्षसेनाद: । श्रथ मरुत्तभरतप्रभूतयो राजानः। मैन्युपनि० प्र०१ 16॰ है । इत्यादि प्रश्रमों से सिद्ध हैं कि दृष्टि से लेकर भारतर्यन्त चक्रबर्ती सोम रजा अग्रन्थु कुख में ही हुए थे अब इसके सन्तों का भाग्योदय होने से राजभ्रष्ट !