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Jकादशसमुल्लास ! १९१

होकर विदेशियों के पाठ्ाक्रान्त होरहे हैं जैसे यहां सुथुन, भूरिघुनइन्द्रद्युम्न, कुवल याश्व, यौवनाव, वद्ध, अश्वपतिशशविन्ड, हरिश्चन्द्र, अम्बरमननक्, सर्घाति ययाति, अनरण्य, अक्षसेन, मरुत्त, भरत सार्वभौम सब भूमि में प्रसिद्ध चक्रवर्ती राजाओं के नाम लिखे हैं वैसे स्वायम्भवादि चक्रवर्ती राजाओो के नाम स्पष्ट मनुस्म ति सहाभारतादि ग्रंथो में लिखे हैं । इसको मिथ्या करना अज्ञानी और पक्षपातियों का काम है (प्रश्न ) जो आग्नेयास्त्र आदि विद्या लिखी हैं वे सत्य हैं या नहीं है और तोष तथा बन्दूक तो उस समय में थी बा नही है (उत्तर ) यह बात सच है ये शस्त्र भी थे क्योंकि पदार्थविद्या से इनका सम्भव है प्रश्न ) क्या ये देवताओ के मन्त्रों से सिद्ध होते थे ? (उत्तर) नहीं, ये सब बातें जिनसे आ शो को सिद्ध करते थे वे ‘मंत्र ' अर्थात् विचार से सिद्ध करते और चलाते थे और जा मन्त्र अन् शब्दमय होता है उससे कोई द्रव्य उत्पन्न नहीं होता और जो कोई कद्दे कि के समन्ध से अग्नि उत्पन्न होता है तो बहू मन्त्र के जप करनेवाले के हृदय और जिह्वा को कर देवे मारने जाय शत्रु को और सर रहै आप इसलिये मन् नाम है विचार भस्म जैसाtाजमंत्री’ अर्थात् राजकम का विचार करनेवाला कह ता है वैसा का मन्त्र अथोत् विचार से सब सृष्टि के पदार्थों का प्रथम ज्ञान और पश्चात् क्रिया करने से अनेक प्रकार के पदार्थ और क्रियाकौशल उत्पन्न होते है जैसे कोई एक लाई का वाण बा गोला बनकर उप में ऐ से पदार्थ रख iके जो अग्नि के लगने में वायु में धुआं फैलने और सूर्य की किरण वा वायु के पश होने से अग्नि जल उठे स का नाम आ!रनेया हूं। ज व दूसरा इसका निवारण करना चाहूं तो उस पर वरूण छोड़ दे अर्थात् जैसे शत्रु ने शत्रु की सेना पर आाग्नेयान छोड़कर नष्ट करना चाहा वैसे ही अपनी सेना की रक्षार्थ सेनापति बारुणा ने आग्नेयाका निवारण करे वह ऐसे द्रव्यों के योग से होता है जिसका धुआं वायु के स्पर्श होते ही दल होंके सेट व ने लग जावे आर्णिन को बुझा दें । ऐसे ही नागास अथन जो शत्रु पर छोडने से उसके अगा को जकड़ के बांध लेता हूं में से ६४ ए माईन्न । अर्थात् जिसमें नशे की चीज डालने से जिसके धुर के लगने से सत्र श की सेना निद्रास्थ अर्थात् मूछिंत होजाय इमी प्रकार सब शलान होते थे और एक तार से व शीशे से अथवा किसी और पदार्थ से विद्युम् उत्पन्न करके शो का त: करते थे उसकी भी अन्याल तथा पशुपतन हंस हैं – “त।अदर नाम अन्य देशभपा के हें सस्कृत और अव्यवह स भ।। देर में .i iकेतु