पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०२

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९९२ सत्यप्रकाश है। - ९ ए . को विदेशी जन तोप कहते हैं सस्कृत और भाषा में उसका नाम 'तनी' और जिसको बन्दूक कहते हैं उसको संस्कृत और आबृभाषा में “शुण्ड’ कहते । जो संस्कृत विद्या को नहीं पढ़े वे भ्रम में पड़कर कुछ का कुछ लिखते और कुछ का कुछ बकते हैं उसका बुद्धिमान लोग प्रमाण नही कर सकते । और जित नई विद्या भूगोल में फैली है वह सब आव देश से सिवालों, उनसे यूनानी, उनसे रूम और उनसे यूरोपदेश में, उनसे अमेरिका आदि देशों में फैली है आव तक जितना प्रचार संस्कृत विद्या का आय्यवर्ती देश में है उतना किसी अन्य देश में नहीं जई लोग कहते है कि जनी देश में सस्कृतविद्या का बहुत प्रचार है और जितना संस्कृत मोसूलर पाब पढ़ हें उतना कोई नहीं पढ़ा यह बात कह ने मात्र है क्योकि ‘रिस्तपाप देश एडisfपे हुमायते’' अर्थात् जिस देश में कोई वृक्ष नहीं होता उस देश में एरड ी को वड बुल मान लेते हैं वैसे ही यूरोप देश में सस्कृत विद्या का प्रचार न होने से जर्मन लोगों और मोक्षमूलर साहब ने थोड़सा पढ़ा ईt उस देश के लिये अधिक है परन्तु आर्यावर्त देश की ओर देखें तो इने की बहुत न्यून गणना है क्योकि मैंने जर्मन देशनिवासी के एक ‘प्रिसिपल’ के पत्र से जाना कि जर्मनी देश में संस्कृत चिीका अर्थ करनेवाले भी बहुत कम हैं और मोक्षमूलर हब के संस्कृत साहित्य और थोड़ीसी बेद की व्याख्या देखकर मुझको विदित होता है कि सोक्षमूलर साहब ने इधर उधर आर्यावर्तीय लोगों की न हुई टीका देखकर कुछ २ यथा तथा लिखा है जैसा कि ‘युवजन्ति नमरुणे चरन्त परितधुपचन्त गचना द्विवि इस मन्त्र का अर्थ घोड़ा किया है इससे तें जो सायणाचार्य ने सूणर्य अर्थ किया है सो अच्छा है परन्तु इसका ठीक अर्थ परमामय है सा सेरी बनाई ‘अदग्धदाभियभूमिका' में देख लीजिय उसमें इस नम का अर्थ यथार्थ किया है इतने से जान लीजिये कि जर्मनी देश और साक्षमूलर सत्र में समस्त विद्या का जितना पाण्डिस्य है1 चइ निश्य है कि जितनी विद्या .र नन भूगोल म ने ३ वे सब ।देश ही से प्रचरित हुए हैं वैों के एक frर्ट ' सटून पैस अथत फतम देश निवासी अपनी ‘बायविल डग इण्डिया' में frके कि सत्र विचा मर भतtदयों का भoर मध्यवर्ती देश है और सत्र fi fत व श म के वे हैं और परमात्मा की प्रार्थना करते हैं कि वे परमेश्वर ! में ईद की ५ लf tवत दो मारे देश की कोशि, लिपडे •f t: ५ में ६ -१ न 4ीं हुए Af२ : में दवाओ६ ने भी यह निवेश किया था कि N Tद st

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