पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०३

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एक मुल्टास॥ ९९३ से शे पूरी वि भ। सैरत में है वैसी किस भाषा में नई वे ऐसा उपनिषदों के भाषा नर से तेि हैं कि मैंने श्र आदि बहुतसी भाप पी परन्तु मेरे मन का सदेह क्टर आनन्द प्त हुआ जन सस्कृत देखा और सुना तब नि:सन्देह होकर मुझको थ मानद हुआ आा है, देखो काशी क ' मे शिशु को कि जिस के ' मानमन्दिरशुमारचक्र की पूरी रक्षा भी नहंी रही है तो भी कितना उत्तम है कि जिसमें अबतक भी ) सगो का बहुतसा वृत्तान्त विदित होता है जो “सवाई जयपुराधीशकी ’’ उस संभाल और ए फटे टट को बनवाया करेगे तो बहुत अच्छा होगा परन्तु से शिरोमणि ' देश को हाभारत के युद्र ने एसा धक्का दिया कि अबतक भी अपनी पूर्व दशा में हीं आया क्योकि जब सन्दडू । भाई को भाई मारने लगे तो नाश होने से क्या ' विनाशकाले विपरीतबुःि है॥ वृद्ध चाणक्य । अ० १६ । १७ ॥ ५ जय न समय कम होने का निकट आता है तब स्टी बुद्धि दें।कर उल्टे करते हैं कोई उनको सूधा स मझांच तो उल्टा माने र उल्टी समझा वे उसको मनबी मा ने जब बड़े २ विद्व। राजा महाराजा ऋषि महर्षि लोग महाभारत युद्ध में वह तसे मारे गये और बहुतसे सराय तब विद्या और वेदक धर्म का प्रचार नष्ट हो चला ईय, कप, अभिमान आपस में करने लगे जो वलवार हुआ वह देश को चकर रजा वन बैठा वैसे ही सर्वत्र आर्यावर्क्स देश में खण्ड अण्ड राज्य होगया पत, द्वीपट्टीपान्तर के राज्य ी व्यवस्था कौन करे' जब ब्राह्माण लोग विद्यहीन हए तब क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के अविद्वान होने में तो कथा ही क्या कहनी ! जो परम्परा से बेदादि शाकों का अर्धसहित पढने का प्रचार था वह भी छटगया वल जीविका पाठमात्र नह्मण लांग पढ़ते रद्द f पाठ मात्र भी क्षत्रिय 3riदे न पढाया क्योंकि जब आविद्वान हुए गुरु बनगये तब छल कपट अब भी उनमें बढ़ ता चला न ह ों ने विचा रा कि अपनी जीविका का प्रबन्ध बधना चाहिये सम्मति कर के ग्रही निश्चय कर क्षत्रिय आदि को , उपदेश करने लगे कि द म ही तुम्हारे पूज्य देव हैविमा हमारी सेवा कि ये तुमको स्वर्ग का मुक्ति से मिलेगी किन्तु जो तुम हमारी सेवा न करोगे तो घोर नरक में पड़ोगे ' जो २ पूर्ण विद्यवाले धार्मिकों का नाम ब्राह्माण और पूजनीय वेद और बषि मुनियों के शास्त्र में लिया था उनको अपने , विषयी, कपटी, लम्पट, आधर्मियों पर घटा बैंठे भला वे आप्त विद्वानों के क्षण इन सूख में कब घट सकते हैं ' परन्तु जब क्षत्रियादि यज मान संस्कृत - - - p ५