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के भी स्वर्ग में नहीं जा सकता जो तुम स्वर्ग में जाना । दो - द ५प जितने रुपये जमा करोगे उतने ही की सामग्री स्वर्ग में तुमको । ११ व १ा नगर 'और में जानेकी 1थ फोई प्राव के गाठ के पूरे स्वर्ग इच्छr , 'डेर के प५ी तो य३७ रुपया देता था तब वह ‘पोज ’ ईसा और मरियम की। ति के सामने 43 हो तर इस प्रकार की हुडी लिखकर देता था हे ' खुIवन्द ई। अ' मनुष्य में ते के नाम पर लाख रुपये स्वरों में आने के लिये हमारे एन सा कर दिये हैं जो बड़े स्वर्ग में प्रावे तत्र ने अपने पिता के स्वर्ग के राज्य में जीसैम मेंडेंस रूप में अमरीचा और मकानपतपच्चीस सहस्त्र रुपयो मे सवारी शिका राश न हर चारपगीम सह झ रुपयों में खाना पीना कपडा लत्ता और पच्चीस सह त्र रूपये के इष्ट मित्र भाई बन्धु प्रादि के जियाफत के वास्ते दिला देना’ फिर उस g tr के नीचे पोपली अपनी सही करके हुण्डी उ म के हाथ में देकर कह देते थे कि ‘‘त्र नु गरे तब इस हुड को कवर से अपने सिराने धर लेने के लिये अपने कुटुम्व । को : ले आावेगे तब तु रमना फिर तु जाने के लिये फरिश्ते और तेरी हुडी को स्वर्ग में ले ले जाकर लिख प्रमाणे सब चीज तुझको दिला द गे ' अब देखिये जानों स्वर्ग का ठेका पोपजी ने ललया 'जबतक यूराप देश में मूखता थी तभीत क वहा पोपजी की लीला चलती थी परन्तु अब विद्या के होने से पोपली की भूठी लीला बहुत भी नहीं हुईं । में से ही अयोंव। देश में भी जानो नहीं चलती किन्तु निर्देल पोप जी ने लाल अवतार लेकर लीला फैलाई हो अर्थात् राजा और जाको विद्या न पटने देना अच्छे पुरुषो का संग न होने देना रात सिवाय दूसरा कुछ दिन बहकाने के भी काम नही करना है परन्तु यह बात ध्यान में रखना कि जो २ छल कपटtदि कुरित स | व्यवहार करते हैं वे ही,ोप कहते हैं जो कोई उनमें भी धार्मिक विद्वान परोपकारी हैं। वे सचे नक्षण और साधु हैं अब उन्हीं छल कपटी स्वार्थी लोगों (मनुहों को ठग कर अपना प्रयोजन सिद्ध करनेवालू ) का प्रहण ‘पोप" शब्द से करना और 1 अक्षण तथा साधु नाम से उत्तम पुरुओं का स्वीकार करना योग्य है। देखो ' जो कोई भी उत्तम त्र।द्ण व साधु न होता तो वेदृदि सयशाला के पुस्तक स्वर सहि त का पठन-ठन जैनमुसलमान, ईसाई आदि के जाल से बचकर आर्यों को वेदादि सत्यश।त्रों में प्रीति यु वणाश्रम में रखना एका कौन कर सकता सिवाय त्रह्माण सस। के ' ‘‘विषाद- यमृत महम् मनु०' विष से भी अव्रत के ग्रहण करने के समान पोपलीला से बहू- काने में से भी आय का जैन आदि सतों से व घ रहना जानो विष मे अमृत के समान