पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०६

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२९ सत्यार्थप्रकाशः ?? १. न गुण समझना चाहिये जब यजमान विद्याहीन हुए और आप कुछ पाठ पूजा पढ़कर विमान में आाके सब लोगों ने परस्पर सम्मति करके राजा आदि से कहा कि त्राह्मण और साधु अदण्ड्य हैं देखो' ‘‘त्रtaर न हन्तव्य: ’ ‘साधुने हन्तव्य" ऐसे २ वचन जो कि सच्चे ब्राह्मण और सओ के विषय में थे सो पोप ने अपने पर बटा लिये और भी भूछे २ वचनयुक्त ग्रन्थ रचकर उनसे ऋषि मुनियों के नाम घर के उन्हीं के नाम से सुनाते रहे उन प्रतिष्ठित ऋषि मर्पियों के नाम से अपने पर से दण्ड की व्यवस्था उठवा दी पुन यथेष्टाचार करने लगे अत् ऐसे कड़े नियम चलाये कि उन पोप की आज्ञा के विना सोना, उठना, बैठना, जाना, थाना, खाना, पीना आदि भी ! नहीं कर सकते थे । राजाओं को ऐसा निश्चय कराया fके पोप संइक कहने मात्र के नहण साधु चाहू सा कर उनकी कभी दण्ड न देन आथात् उन पर मन में दण्ड देने की इच्छा करनी चाहिये जब ऐसी मूर्खता हुई तब जैसी पोपों की इच्छा हुई बैसा न करने करने लगे अथत ईस गाड के मूल सहभारत युद्ध से पूर्व एक सहस्र वष से प्रत्त हुए थे क्योंकि इस समय में ऋषि मुनि भी थे तथापि कुछ २ आलस्य, मुम महद, इय, दंप के अंकुर उस थे व बढ़ते २ हगये जब सवा उपदेश न रद्द - e तव आयोवत्त में अवेद्य फैल कर परस्पर में लडने आने पर क्योंके: उपदेश्योपदेष्ट्रवात् तरिद्धि’ । इतरथान्धपरम्परा ! सांख्य० अ० ३ । सू० ७६ । ८१ ॥ अन् जब उतम २ उपदेशक होते हैं तब अच्छे प्रकार धर्मअर्थकाम और

मोठ सिद्भ होते हैं । और जब उत्तम उपदेशक और श्रोता नहीं रहते तब अन्वप - -

रम्परा चलती है । फिर भी जब सत्पुरुष उत्पन्न होकर सत्योपदेश करते है तभी अ. परम्परा नष्ट होकर प्रकाश की परम्परा चलती है । पुन, वे पोप लोग अपनी ोर | ( अपने चरर्थों की पूजा करने और कहने लगे कि इस में तुम्हारा कल्याण है जब ये लोग इनके वश में हो गधे तत्र प्रमाट और बिपासक्ति में निमग्न होकर गड़रिया के समय न गुरु औtर चेले फसे घित्रा,पराक्रमशुभ2ण होते गत , बुद्धि, वीरतादि सब नष्ट पद १६ग व पिचोख मांस गशे २ करने लगे पश्चा क्त हुए तो का सेवन गुप्त हुई ६ 5 व 3धर्म प्रया ‘शिक वाप7 • पावयुवाच रव उवाच' ’ इश्य'दि 1 . परइन ऊा तंत्र नाम पर उन में ऐसी २ विचिन्न लता की बाते लिहूँ कि t t