पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३०७

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, शुल्स ॥ २९७ सव सांसें ा न मीन - च मुद्रा मैथुनमेव च । न पा मकारः स्युमiक्षदा हि युगे युगे ॥ तtद प्र ॥ पर्स में अधिक संव बणi iजातय: । iने अक्त अरबंiच सवें बण: ठथ दृथ ॥ एंव ता ॥ पीचा पीवा पुन: पीब यापितति भूतले । . पुनरुत्ाय वें पोवा पुनर्जन्म न वेबस ॥ महनेमण तन्त्र है। सागोनैि परित्यज्य विहत् सर्वयोनिख । बेदशाघपुरयानि सामान्यगणिका इव ॥ एकेव शाम्भवी मुद्रा डता कुलवरिव। ज्ञान संकलनी तन्त्र है? अथत देखो इन गवरोण्ड पोपो की लीला जो कि वेद विरुद्ध मह।अधर्म के काम हैं उन्हीं को श्रेष्ठ वाम मiनयां ने सामना मद्य, मांस, मीन अर्थात् सच्छी, मुद्रा, री चौरी और बड़े रोटी आदि चवे योनि पात्राधार मुद्रा और पांचवां मैथन अर्थात् पुरुष सब पावती मानकर:--- शिव और घी सब के समान अहं भेरवस्में भैरवी झावयोरस्तु सहमः । चाहें क ई पुरुष व बी हो इस ऊटपटांग बचन को पढ के समागम करने में वे वाममार्गी दोष नहीं मानते अर्थात् जिन नीच नियों का छूना नहीं उनको अति पवित्र उन्होंने माना है जैसे शास्त्रों में रजस्वला आदि नियों के पश का निषेध है। उनको वाममार्गयों ने आतिपवित्र माना है सुनो इनका श्लोक अंडबैंड रजस्वला पुष्कर तीर्थ चांडाली तु स्वयं काशी चर्मकारी प्रयागस्याद्रजको मथुरा मता। अयोध्या पुक्कसी प्रोक्ता ॥ रुद्रयान तब ॥