पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१४

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। ३०४ सत्यार्थप्रकाशः }} आर्यावर्त देश में घूमने का प्रबन्ध सुधन्वादि राजाओं ने करदिया और उनकी रक्षा के लिये साथ में नौकर चाकर भी रख दिये उसी समय से सब के यज्ञोपवीत होने लगे और वेदों का पठनपाठन भी चला दश वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में बूप २ कर जैनियों का खण्डन और वेदों का मण्डन किया परन्तु शङ्कराचार्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात् जितनी मूर्तियां जैनियों की निकलनी है ये शङ्कराचार्य के समय में टूटी थी और जो विना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड़ दी थी कि नोडी न जायें वे अबतक कहीं २ भूमि में से निकलती हैं शङ्कराचार्य के पूर्व शैवमत भी थोडासा प्रचालित था उसका भी खण्डने किया वासमाग का खण्डन किया उस समय इस देश में वन वहुत था और स्वदेशभक्ति भी थी जैनियों के मदिर शङ्कराचार्य और सुधन्वा राजा ने नहीं तुड़वाये थे क्योंकि उनमे वेदादि की पाठशाला करने की इच्छा थी जब वेद मत का स्थापन होचुका और विद्याप्रचार करने का विचार करते ही थे इतने में दो जैन ऊपर से कथनमात्र वेदमत और भीतर से कट्टर जैन अर्थात् केपटमुनि थे शङ्कराचार्य उन पर अति प्रसन्न थे इन दोनों ने अवसर पाकर शङ्कराचार्य को ऐसी विषयुक्त वस्तु खिलाई कि उनकी क्षुधा मन्द होगई पश्चात् शरीर में फोड़े फुन्सी होकर छः महीने के भीतर शरीर छूट गया तव सत्र निरुत्साही होगये और जो विद्या का प्रचार होने वाला था वह भी न होने पाया जो २ उन्होंने शारीरिक भाष्यादि बनाये थे उनका प्रचार शङ्कराचार्य के शिष्य करने लगे अर्थात् जो जैनियो के खण्डन के लिये ब्रह्म सत्य जगत् मिथ्या और जीव ब्रह्म की एकता कथन की थी उसका उपदेश करने लगे, दक्षिण में शृङ्गेरी, पूर्व में भूगोवर्दैन, उत्तर मे जोस और द्वारिका में सारदामठ वाधकर शङ्कराचार्य के शिष्य महन्त बन और श्रीमान् होकर अनि २३ करने लगे क्योंकि शङ्कराचार्य के पश्चात् उनके शिष्या की वडी प्रतिष्ठा होने लगी । अब इसमें विचारना चाहिये कि जो जीव ब्रह्म की एकता जगत् मिथ्या शङ्कराचार्य का निज मत था तो वह अच्छ। मत नहीं और जो जैनियों के खण्डन के लिये उसे मन का स्वीकार क्रिया हो तो कुछ अच्छा है ! नवीन वेदान्तियों का मत ऐसा है। { प्रश्न ) जगत् स्वप्नन्, रज्जू में सर्प, मीप में चांदी, मृगतृष्णका में जल, गन्धर्वनगर इन्द्रजात् यह संसार झूठा है एक ब्रा ही सच्चा है। { सिद्धान्त ) झूठ तुम | किमको कहते हो ? ( ननन) जो वन्तु न हो और प्रतीत होवे । (मिद्धान्त ) जो } । अन्नु है। नई उमफी प्रतीति कैसे हो सकती है (नवीन) अध्याय से ( सिद्धान्त