पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१५

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एकादश समुल्लासः ।। अध्यारोप किसको कहते हो ? (नवीन) वस्तुन्यस्त्वारोपणमध्यासः" *अध्यारोपापवादाभ्यां निप्रपंच प्रपंच्यते' पदार्थ कुछ और हो उसमें अन्य वस्तु का आरोपण करना अध्यास अध्यारोप और उसका निराकरण करना अपवाद कहता है इन दोनों से प्रपंच रहित ब्रह्म प्रपचरूप जगत् विस्तार करते हैं ( सिद्धान्ती ) तुम रज्जू को वस्तु और सर्प को अवस्तु मानकर इस भ्रमजाल में पड़े हो क्या सर्प वस्तु नहीं है ? जो कहो कि रज़ में नहीं तो देशान्तर में अर उसका सस्कारमात्र हृदय में है फिर वह सर्प भी अवस्तु नहीं रहा वैसे ही स्थाणु में पुरुष, सीप में चांदी अादि की व्यवस्था समझ लेना और स्वप्न में भी जिनका भान होता है वे देशान्तर में हैं और उन के संस्कार आत्मा में भी है इसलिये वह स्वप्न यी वस्तु में अवस्तु के आरोपण के मान नहीं । ( नवीन ) जो कभी न देखा न सुना जैसा कि अपना शिर कटा है। और अप रोता है जल की धारा ऊपर चली जाती है जो कभी न हुअा था देखा जाता है वह सत्य क्योकर हो सके ? ( सिद्धान्ती ) यह भी दृष्टान्त तुम्हारे पक्ष को सिद्ध नहीं करता क्योंकि विना देखे सुने सस्कार नहीं होता संस्कार के विना स्मृति और { स्मृति के विना साक्षात् अनुभव नहीं होता जब किसी से सुना वा देखा कि अमुक का | शिर केटा और उसके भाई वा बाप आदि को लड़ाई में प्रत्यक्ष रोते देखा और फोहारे का जल ऊपर चढ़ते देखा वा सुना उसका संस्कार उसी के आत्मा में होता है जब यह जाग्रत् के पदार्थ से अलग होके देखता है तव अपने आत्मा में उन्हीं पदार्थों को जिनको देखा वा सुना होता देखता है जब अपने ही में देखता है तब जानो अपना शिर कदा आप रोता और ऊपर जाती जल की धारा को देखता है यह भी वस्तु में अवस्तु के आरोपण के सदृश नहीं किन्तु जैसे नक्शा निकालनेवाले पूर्व दृष्ट श्रुत वा किये हुओं को आत्मा में से निकाल कर कागज़ पर लिख देते हैं अथवा प्रतिविम्व का उतारनेवाला विम्ब को देख आत्मा में आकृति को धर वरावर लिखदेता है हां ! इतना है कि कभी २ स्वप्न में स्मरणयुक्त प्रतीति जैसा कि अपने अध्यापक को देखता है। और कभी बहुत काल देखने और सुनने में अतीत ज्ञान को साक्षात्कार करता है तब स्मरण नहीं कि जो मैंने उस समय देखा सुना वा किया था उसी को देखता, सुनता वा करता हू जैसा जाग्रत् में स्मरण करता है वैसा स्वप्न में नियमपूर्वक नहीं होता, देखो जन्मान्ध को रूप का स्वप्न नहीं आता इसलिये तुम्हारा अध्यास और अध्यारोप का लक्षण झूठा है और जो वेदान्ती लोग विवर्त्तवाद अर्थात् रज्ज़ में सपदि के भान होने का दृष्टान्त ब्रह्म में जगत् के भान होने में देते है वह भी ठीक नहीं। (नवीन) अधि

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