पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१९

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........... - ~ | कादशसमुल्लास: ।। ३०१ । .......... ..... हो तो वर्षा कहां से होवे ? इसलिये जो दूर २ तम्बू के समान दीखता है वह जले का चक्र है जैसे कुहिर दूर से घनाकार दीखता है और निकट से छिदरा और डेरे के समान भी दीखता है वैसा आकाश में जल दीखता है । ( नवीन ) क्या हमारे रज्जू सर्प और स्वप्नादि के दृष्टान्त मिथ्या हैं ? ( सिद्धान्त ) नही, तुम्हारी ससफ मिथ्या है सो हमने पूर्व लिख दिया भला यह तो कहो कि प्रथम अज्ञान किसको होता है ? (नवीन) ब्रह्म को । ( सिद्धान्ती ) ब्रह्म अल्पज्ञ है वा सर्वज्ञ ? ( नवीन ) न सर्वज्ञ और न अल्पज्ञ क्योकि सर्वज्ञता और अल्पज्ञता उपाधिसहित में होती है । ( सिद्धान्त ) उपाधि से सहित कौन है ? ( नवीन ) ब्रह्म । ( सिद्धान्ती ) तो ब्रह्म ही सर्वज्ञ और अल्पज्ञ हुआ तो तुमने सर्वज्ञ और अल्पज्ञ का निषेध क्यों किया था ? जो कहो कि उपाधि कल्पित अर्थात् मिथ्या है तो कल्पक अर्थात् कल्पना करनवाला कौन है ? (नवीन) जीव ब्रह्म है वा अन्य ? ( सिद्धाती ) अन्य है, क्योंकि जो ब्रह्मस्वरूप है तो जिसने मिथ्या कल्पना की वह ब्रह्म ही नहीं हो सकता जिसकी कल्पना मिथ्या है वह सच्चा कब हो सकता है ( नवीन ) इम सत्य और असत्य को झूठ मानते हैं और वाणी से बोलना भी मिथ्या है। ( सिद्धान्ती ) जव तुम झूठ कहने और मानने वाले हो तो झूठे क्यों नहीं ? ( नवीन ) रहो, झूठ और सच हमारे ही में कल्पित है और हम दोनो के साक्षी अधिष्ठान हैं । ( सिद्धान्ती ) जब तुम सत्य और झूठे के आधार हुए तो साहूकार और चोर के सदृश तुम्हीं हुए इससे तुम प्रामाणिक भी नहीं रहे क्योंकि प्रामाणिक व होता है जो सर्वदा सत्य माने, सत्य बोले, सत्य करे, झूठ न माने, झूठ न बोले और झूठ कदाचित् न करे जब तुम अपनी बात को आप ही झूठ करते हो तो तुम अपने आप मिथ्यावादी हो । ( नवीन ) अनादि माया जो कि ब्रह्म के आश्रय और ब्रह्म ही का आवरण करती है उस को मानते हो वा नहीं ? ( सिद्धान्ती ) नहीं मानते, क्योंकि तुम माया का अर्थ ऐसा करत हो कि जो वस्तु न हो और भासत है तो इस बात को वह मानेगा जिसके हृदय की अखि फूट गई हो क्योंकि जो वस्तु नही उसका भासमान होना सर्वथा असंभव है जैसा बन्ध्या के पुत्र का प्रतिविम्व कभी नहीं हो सकता और यह ‘सन्मूलाः सम्येमा. प्रजा: इत्यादि छान्दोग्य आदि उपनिषदों के वचनों से विरुद्ध कहते हो ? (नधीन } क्या तुम बसिष्ठ शङ्कराचार्य आदि और निश्चलदास पर्यन्त जो तुमसे अधिक पण्डित हुए हैं उन्होंने लिखा है उसको