पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३२२

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-= -= ३१२ सत्यार्थप्रकाशः || rwww = -=-=- = -=-

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- arrer == नेतनुपपत्तेः ॥ १। १ । १६ ॥ भेदव्यपदेशाच्च ॥ १। १ । १७ ॥ विशेषणभेदव्यपदेशाभ्यां च नेतरौ ॥ १। २ । २२ ।। अस्मिन्नस्य च तद्योग शास्ति ।। १ । १ । १६ ।। अन्तस्तद्धर्मोपदेशात् ॥ १ । १ । २० ॥ भेदव्यपदेशाच्चान्यः ।। १ । १ । २१ ॥ गुहां प्रविष्टावात्मानौ हि तद्दर्शनात् ॥ १। २ । ११ ॥ अनुपपत्तेस्तु न शारीरः ॥ १।२ । ३ ।। अन्तर्याम्यधिदैवादिषु तद्धर्मव्यपदेशात् ॥ १ । २ । १८ ।। शारीरश्चोभयेऽपि हि भेदेनैनमधीयते ॥ १।२ । २० ॥ व्यासमुनिकृतवेदान्तसूत्राणि ॥ | ब्रह्म से इतर जीव सृष्टिकर्ता नहीं है क्योंकि इस अल्प अल्पज्ञ सामर्थ्यवाले जीव में सृष्टिकर्तत्व नहीं घट सकता इससे जीव ब्रह्म नहीं ।। रस ह्यवायं लब्ध्व। नन्दी भवति” यह उपनिषद् का वचन है। जीव और ब्रह्म भिन्न हैं क्योंकि इन। दोनों का भेद प्रतिपादन किया है जो ऐसा न होता तो रस अर्थात् आनन्दस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त होकर जीव आनन्दस्वरूप होता है यह प्राप्तिविषय ब्रह्म और प्राप्त । होनेवाले जीव का निरूपण नहीं घट सकता इसलिये जीव और ब्रह्म एक नहीं || } दिव्यो ह्यमूर्त्तः पुरुषः स वाह्याभ्यन्तरो ह्यजः । अप्राण । ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात्परतः परः ॥ मुण्डकोपनिषदि मुं० । २। खं० १ } मं० २ ॥ | दिव्य, शुद्ध, मूर्तिमत्त्वरहित, सव में पूर्ण, बाहर भीतर निरन्तर व्यापक, अज, । जन्म मरण शरीरधारणादि रहित, श्वास, प्रश्वास शरीर और मन के सम्बन्ध से रहित, प्रकाशस्वरूप इत्यादि परमात्मा के विशेषण और अक्षर नाशराहत प्रकृति से परे । ... अर्थात् सूक्ष्म जीव उससे भी परमेश्वर परे अर्थात् ब्रह्म सूक्ष्म है प्रकृति और जीवों से । = == =*