पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

| सत्यार्थप्रकाश. ।। | भर्तृहरि राजा काव्यादि शास्त्र और अन्य में भी कुछ २ विद्वान् हुअ उसने वैरा| ग्यवान् होकर राज्य को छोड़ दिया। विक्रमादित्य के पांचसौ वर्ष के पश्चात् राजा भोज हुआ उसने थोडासा व्याकरण' और काव्यालकारादि का इतना प्रचार किया कि | जिसके राज्य में कालिदास बकरी चरानेवाला भी रघुश काब्य का कत्त हुआ राजा भोज के पास जो कोई अच्छा श्लोक बनाकर लेजाता था उसको वहुतसा वन देते थे और प्रतिष्ठा होती थी। उसके पश्चात् राजाओं और श्रीमान ने पढ़ना ही छोड दिया । यद्यपि शङ्कराचार्य के पूर्व वाममार्गियों के पश्चात् शैव आदि सम्प्रदायस्थ मतवादी भी हुए थे परन्तु उनका वहुन बल नहीं हुआ था महाराजा विक्रमादित्य से लेके शैवों का बले बढता या शैवों में पाशुपतादि वहुतसी शाखा हुई थी जैसी वाममार्गियों में दर्श महाविद्यादि की शाखा हैं लोगों ने शङ्कराचार्य को शिव का अवतार ठहराया। उनके अनुयायी संन्यासी भी शैवमत में प्रवृत्त होगये और वाममार्गयों को भी मिलाते रहे वाममार्गी देवी जो शिवजी की पत्नी है उसके उपासक और शैव महादेव के उपासक हुए ये दोनों रुद्राक्ष और भस्म अद्यावधि धारण करते है परन्तु जितने वाममार्गी वेदविरोधी हैं उतने शैव नहीं हैं। धिक् धक् कपालं भस्मेरुद्राक्षविहीनम् ॥ १॥ रुद्राक्षान् कण्ठदेशे दशनपरिमितान्मस्तके विंशती हे, षट् षट् कर्णप्रदेशे करयुगलगतान् द्वादशान्द्वादशैव । चाह्वोरिन्दोः कलाभिः पृथगित गदितमेकमेवं शिखायाम् , वक्षस्यष्टाऽधिकं यः कलयति शतकं स स्वयं नीलकण्ठः ॥२॥ इत्यादि बहुत प्रकार के श्लोक इन लोगों ने बनाये और कहने लगे कि जिसके कपाल में भस्म और कण्ठ में रुद्राक्ष नहीं है उसको धिक्कार है “तं त्यजेदन्त्यजं यथा उसको चाडल के तुल्य त्याग करना चाहिये || १ ॥ जो कण्ठ में ३२, शिर में ४०, छ छ कानों में, बारह २ करों में, सोलह २ भुजाओं में, १ शिखा में और हृदय में १०८ रुद्राक्ष धारण करता है वह साक्षात् महादेव के सदृश है।। २ ।। ऐसा ही शाक्त भी | मानते हैं पश्चात् इन वाममार्ग और शैवों ने सम्मति करके भग लिग का स्थापन किया |