पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३३०

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५; १०१२: ।। वैश्णवादि मय लेग पर कर रहे दून के नाम की निन्दा करते हैं मन्दमति तनिक भी अपनी बुद्वि का के नः फर न विचारते हैं कि ये भय , रुद्र, शिव आदि नाम " 5 अद्विनौय, सवनियन्ता, मवन्तव, जगदीश्वर के 'मने ६ : रूम स्वभावयुक्त होने से उस के नानक न पा १ गाग र अर | केपि न होता होगा ? अव देविगे चक1ि वैरण की अद्भु-१ गागा -- तापः पुण्ई तथा नाम माला मन्त्रस्नथैव च । अभी हि पञ्च संस्काराः परमकान्तहेतवः ॥ अतप्ततनून तदामा अश्नुते । इति श्रुतेः ।। रामानुज्ञपटलपद्धता ।।। अर्थ (ताप ) शव, चक्र, गदा र पद्म के चिन्ह को अग्नि में नपा के भुजा के मून में दाग दे कर पञ्चान दुग्धयुक्त पात्र में बुझते हैं और कई उस दूध को पर भी ले हैं अ । देवप प्रयॐ हीं मनुश्य के मोम 'हो । उद उममें अता । होगा ऐसे २ में से परमेश्वर को प्राप्त होने की आशा करते हैं और कहते हैं कि विना शेख चक्रादि से शरीर तपाये जीव परमेश्वर के छात्र नहीं होता क्योंकि वह ( अम. ) अर्थात् का है और जमे रान के पास अति चिन्ह के होने में गजपुप जन उससे सब लोग दुग्ते हैं वैसे ही विशु के शव चदि अयुधों के चिन्ह देख कर यमराज और उनके गण इसे है और कहते हैं कि - दोहा-बाना बड़ा दयाल को, तिलक छाप और साले । | यम डरपे काल कहे, भय मान भृपाल । अर्थात् भगवान् का वाना तिलक छाप और माला धारण करना बड़ा है । जिससे यमराज और राजा भी डरता है ( पुण्ड्रम् ) त्रिशूल के मद्देश ललाट में चित्र निकालना ( नाम ) नारायणदास विष्णुदास अर्थात् दासशब्दान्त नाम रखना ( माला ) कमलगट्टे की रखना और पांचवां ( मन्त्र ) जैम. ॐ नमो नारायणाय । यह इन्होंने साधारण मनुष्य के लिये मन्त्र वन रक्खा हैं तथा:--