पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३३६

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३२६ सत्यार्थप्रकाश' ।। - - से पुष्प पत्र तोड़ के क्यों चढ़ाते ? चन्दन घिसके क्यो लगात ? धूप को जलाके क्य दुते ? घटा, घरियाल, झाज, पखाजों को लकड़ी से कूटना पीटना क्यों करत हो ? तुम्हारे हाथों में है क्यो जोड़त ? शिर में है क्यो शिर नमाते ? अन्न जलादि में है क्यों नैवेद्य धरते ? जल में हैं स्नान क्यों करते है क्योंकि उन सब पदार्थों में परमात्मा व्यापक है और तुम व्यापक की पूजा करते हो वा व्याप्य की ? जो व्यापक की करते हो तो पाषाण लकड़ी आदि पर चन्दन पुष्पादि क्यों चढ़ाते हो ? और व्याप्य की करते हो तो हम परमेश्वर की पूजा करते है ऐसा झूठ क्यों वोलते हो ? हम पाषाणादि के पुजारी हैं ऐसा सत्य क्यों नहीं बोलते ? । । अब कहिये “भाव’ सञ्चा है वा झूठा ? जो कहो सच्चा है तो तुम्हारे भाव के अधीन होकर परमेश्वर बद्ध होजायगा और तुम मृत्तिका में सुवर्ण रजतादि, पापाण में हीरा पन्ना आदि, समुद्रफेन में मोती, जल में धृत दुग्ध दृधि आदि और धूलि में मैदा शक्कर आदि की भावना करके उनको वैसे क्यों नहीं बनाते हो ? तुम लोग दुख की भावना कभी नहीं करते वह क्यों होता है और सुख की भावना सदैव करते हो वह क्यों नहीं प्राप्त होता ? अन्धा पुरुष नेत्र की भावना करके क्यों नहीं देखता मरने की भावना नहीं करते क्यों मरजाते हो ? इसलिये तुम्हारी भावना सर्च नहीं क्याकि जैसे में वैसी करने का नाम भावना कहते हैं जैसे अग्नि में अग्नि, जल में जल जानना और जल में अग्नि, अग्नि में जल समझना अभावना है। क्योंकि जैसे को वैसा जानना ज्ञान और अन्यथा जानना अज्ञान है इसलिये तुम अभावना को भावना और भावना को अभावना कहते हो (प्रश्न) अजी जबतक वेदमन्त्रों से अवाहन नहीं करते तबतक देवता नहीं आता और आवाहन करने से झट आता और विसर्जन करने से चला जाता है (उत्तर) जो मन्त्र को पढ़कर आवाहन करने से देवता जाता है तो मृत्ति चेतन क्यों नहीं होजाती ? और विसर्जन करने से चला क्यों नहीं। जाता? और वह कहां से आता और कहां जाता है? सुनो-भाई! पूर्ण परमात्मा न अाता और न जाता है जो तुम मन्त्रवल से परमेश्वर को बुला लेते हो तो उन्हीं मन्त्रों से अ- । पने मरे हुए पुत्र के शरीर में जीव को क्यों नहीं बुला लेते ? और गन्नु के शरीर में जीवात्मा का विसर्जन करके क्यों नहीं मार सकते। सुनो भाई | भोले भाल लोगा' ये | पोपज तुमको ठगकर अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं वेदों में पाषाणादि मूरितेतूजा और | परमेश्वर के अवाहन विमर्जन करने का एक अक्षर भी नहीं है । ( प्रश्न )--