पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३४२

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| सत्यार्थप्रकाशः ।। ने सुगन्धियुक्त पुष्पादि पदार्थ वायु जल के दुर्गन्ध निवारण और आरोग्यता के लिये | वनाये हैं उनको पुजारीजी तोड़ताड़ कर न जाने उन पुष्पों की कितने दिन तक | सुगन्धि आकाश में चढ़कर वायु जल की शुद्धि करता और पूर्ण सुगन्धि के समय तक उसका सुगन्ध होता उसका नाश मध्य में ही कर देते हैं पुष्पादि कीच के साथ मिल सडकर उलटा दुर्गन्ध उत्पन्न करते हैं क्या परमात्मा ने पत्थर पर | चढ़ाने के लिये पुष्पादि सुगन्धियुक्त पदार्थ रचे है ? । सोलहवा-पत्थर पर चढ़े हुए | पुष्प चन्दन और अक्षत आदि सच का जल और मृत्तिका के संयोग होने से मोरी वा कुण्ड में आकर सड के उससे इतना दुर्गन्ध आकाश में चढ़ता है कि जितना मनुष्य के मल का और सहस्र जीव उसमें पड़ते उसी में मरते सडते हैं। ऐसे २ अनेक मूर्तिपूजा के करने में दोष आते है इसलिये सर्वथा पापाणादि मूर्तिपूजा सज्जन लोगों को त्यक्तव्य है । और जिन्होंने पाषाणमय मूर्ति की पूजा की है, करते हैं और करेंगे वे पूर्वोक्त दोषों से न वचे, न वचते है और न बचेंगे ।। | ( प्रश्न ) किसी प्रकार की मूर्तिपूजा करनी करानी नहीं और जो अपने अय्यवर्त में पंचदेवपूजा शब्द प्राचीन परम्परा से चला आता है उसका यही पचायतनपूजा जो कि शिव, विष्णु, अम्बिका, गणेश और सूर्य की मूर्ति बनाकर पूजते हैं यह पंचायतनपूजा हेवा नहीं ? (उत्तर),कसी प्रकार की मूर्तिपूजा न करना किन्तु मूर्तिमान् जो नीचे कहेंगे उनकी पूजा अर्थात् सत्कार करना चाहिये वह पचदेवपूजा, पचायतनपूजा शब्द बहुत अच्छा अर्थवाला हैं परन्तु विद्याहीन मूढों ने उसके उत्तम अर्थ को छोडकर निकृष्ट अर्थ पकड़ लिया जो आजकल शिवादि पांचों की मूर्तिया बनाकर पूजते हैं उनका खण्डन तो अभी कर चुके हैं पर सच्ची पचायतन बेदोक्त और वेदानु, कुलाक देवपूजा और मूर्तिपूजा यह है सुनो. मा नो वधीः पितरं मोल मातरम् ॥ यजु० । अ० १६ ।। में १५ ।। अचाय्य ब्रह्मचर्यण ब्रह्मचारिणमिच्छते ॥ अथर्व० । कां० ११ । ३० ५ । मं० १७ }} अतिथिहानागच्छेत् ।। अथर्व०॥ का १५।०१३। मं०६॥