पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। ३३६ सत्यार्थप्रकाश, }} । जाती है उसको ले सुतार लोग मूर्तियां बनाते हैं जब रसोई बनती है तव कपाट ! बन्द करके रसोइयों के विना अन्य किसी को न जाने न देखने देते हैं भूमि पर चारों ओर छ और बीच में एक चक्राकार चूल्हे बनते हैं उन हण्डों के नीचे थी मही और राख लगा छ. चूल्हों पर चावल पका उनके तले मांज कर उस बीच के | हण्डे में उस समय चावल डाल छः चूल्हों के मुख खोहे के तवा से बन्द कर दर्शन करनेवालो को जो कि धनाढ्य हों बुला के दिखलाते हैं ऊपर २ के इण्डों से चावल निकाल पके हुए चावलों को दिखला नीचे के कच्चे चावल निकाल दिखा के उनसे कहते हैं कि कुछ हण्डो के लिये रख दो आंख के अन्धे गाठ के पूरे रुपये अशर्फी धरत और कोई २ मासिक भी बांध देते हैं । शूद्र नीच लोग मन्दिर में नैवेद्य लाते हैं जव नैवेद्य हो चुकता है तब वे शूद्र नीच लोग जूठा कर देते हैं - श्चात् जो कोई रुपया देकर हण्डा लेवे उसके घर पहुचाते और दोन गृहस्थ और साधु सन्तों को लेके शूद्र और अन्त्यजपर्यन्त एक पंक्ति में बैठ जूठा एक दूसरे का भोजन करते हैं जब वह पंक्ति उठती है तब उन्हीं पत्तलो पर दूसरों को वैठाते जाते हैं महा अनाचार है और बहुतेरे मनुष्य वहां जाकर उनका जूठा न खाके अपने हाथ बना खाकर चले आते हैं कुछ भी कुष्ठादि रोग नहीं होत और उस जगन्नाथपुरी में भी बहुतसे परसादी नहीं खाते उनको भी कुशादि रोग नहीं होते और उस जगन्नाथपुरी में भी बहुतसे कुष्ठी हैं नित्यप्रति जूठा खाने से भी रोग नहीं छूटता और यह जगन्नाथ में वाममार्गियों ने भैरवीचक्र बनाया है क्योंकि सुभद्रा श्रीकृष्ण और बलदेव की वहिन लगती है इसी को दोनों भाइयों के बीच में स्त्री और माता के स्थान बैठाई है जो भैरवीचक्र न होता तो यह वात कभी न हाती । और रय के पहियों के साथ कला बनाई हैं जब उनको सूधी घुमाते हैं घूमती है तब रथ चलता हैं जव मेले के बीच में पहुचता है तभी उम्र की कील को उलटी घुमा देने से रथ खड़ा रह जाता है पूजारी लेाग पुकारते हैं दान दे पुण्य करो जिससे जगन्नाथ प्रसन्न होकर अपना रथ चलावें अपना धर्म रहे जबतक भेट आती जाती है तबतक ऐसे ही पुकारते जाते हैं जब चुकती है तब एक ब्रजवासी अच्छे कपड़े दुसाला ओढ़कर आगे खड़ा रहके हाथ जोड़ न्तुति करता है कि हे जगन्नाथ स्वामिन् ! आप कृपा करके रथ को चलाइये हमारा धर्म रक्खो इत्यादि बाल के साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम कर रथ पर चढ़ता है उनी समय कील को सुधी बुमा देते हैं और जब २ शव्द वोल म| | इस मनु: रस्सी खींचते हैं रथ चलता है। जब वटुत से लोग इर्शन को जाते हैं