पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३४८

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सत्यार्थप्रकाशः ।। | ठीक है कि दक्षिण देशस्थ रामनामक राजा ने मन्दिर वनवा लिङ्ग का नाम रामेश्वर धर दिया है जब रामचन्द्र सीताजी को ले हनुमान् आदि के साथ लङ्का से चले आकाशमार्ग में विमान पर बैठ अयोध्या को आते थे तव सीताजी से कहा है कि. अत्र पूर्व महादेवः प्रसादमकरोद्विभुः ।। सेतुबन्ध इति ख्यातम् ॥ बाल्मीकि रा० ॥ | लंका कॉ० सर्ग १२५ । लो० २० ॥ हे सीते! तेरे वियोग से हम व्याकुल होकर घूमते थे और इसी स्थान में चातुमस्य किया था और परमेश्वर की उपासना ध्यान भी करते थे वही जो सर्वत्र विभु (व्यापक) देवू का देव महादेव परमात्मा है उसकी कृपा से हमको सब सामग्री यहां प्राप्त हुई और देख यह सेतु हमने बाधकर लङ्का में अके उस रावण को मार तुझ को ले आये इसके सिवाय वहा बाल्मीकि ने अन्य कुछ भी नहीं लिखा। (प्रश्न):रङ्ग है कालियाकन्त को। जिसने हुक्का पिलाया सन्त को” । दक्षिण में एक कालियाकन्त की मूर्ति है वह अबतक हुक्का पिया करती है जो मूर्तिपूजा कूठी हो तो यह चमत्कार भी झूठा होजाय 1 ( उत्तर) झूठी २, यह सव पोपलीला है क्योंकि वह मूर्ति का मुख पोला होगा उसका छिद्र पृष्ट में निकाल के भित्ती के पार दूसरे मकान में नल लगा होगा जर्व पुजारी हुक्का भरवा पेचवान लगा मुख में नली जमा के पडदे डाल निकल आता होगा तभी पीछेवाला आदमी मुख से खींचता होगा तो इधर हुक्का गड़ २ वाला होगा दूसरा छिद्र नाक और मुख के साथ लगा होगा जब पीछे फूकें मार देता होगा तव नाक और मुख के छिद्रों से दुआ निकलता होगा उस समय बहुत से मूढों का धनादि पदार्थों से लूट कर धन रहित करते होंगे ।। (प्रश्न) देखो ! डाकारजी की मूर्ति द्वारिका से भगत के साथ चली आई एक सवारत्ती सोने में कई मन की मूर्ति तल गई क्या यह भी चमत्कार नहीं ? (उत्तर) नहीं वह भक्त मूर्ति को चुरा लाया होगा और सवारत्ती के बराबर मूर्ति का तुलना किसी भंगड आदमी ने गप्प मारा होगा । ( प्रश्न ) देखो ! मोमनाथजी पृथिवी से ऊपर रहता था और बड़ा चमत्कार था | क्या यह भी मिथ्या वात है ? (उत्तर ) हा मिथ्या है सुनो ! ऊपर नीचे चुम्बक पाषाण |